अर्चना सिंह
एक छोटे से गांव में एक पति थक हार कर घर लौटा और अपनी पत्नी से पानी मांगा। जब पत्नी पानी लेकर आई, तो पति गहरी नींद में सो गया। पत्नी ने अपने पति के प्रति प्रेम और करुणा के कारण पूरी रात उसके पास गिलास हाथ में लिए खड़ी बिताई, यह सोचते हुए कि अगर वह जाग जाए तो उसे तुरंत पानी दे सके। यह बात पूरे गांव में फैल गई और सम्राट ने उसे उसकी निस्वार्थ सेवा के लिए सम्मानित किया। सम्राट ने महसूस किया कि यह महिला प्रेम और सेवा की जीवंत मूर्ति है और उसकी संस्कृति का जीवंत प्रतीक है।
इस घटना से प्रेरित होकर पड़ोसी महिला ने भी रातभर अपने पति के पास गिलास लेकर खड़े होने का नाटक किया ताकि उसे भी सम्मान और पुरस्कार मिले। हालांकि, उसके अंदर प्रेम और निस्वार्थ भावना का अभाव था। सम्राट ने उसकी इस नकल और पाखंड को भांप लिया और उसे दंड दिया। उसने कहा कि करना और होना दो अलग बातें हैं। जब कर्म भावना से प्रकट होता है, तभी उसका मूल्य होता है।
सम्राट ने स्पष्ट किया कि प्रेम, सेवा, भक्ति जैसी भावनाएं सिर्फ क्रियाओं से नहीं जानी जा सकतीं। इनका वास्तविक अर्थ तभी होता है जब वे हमारे हृदय में गहराई से महसूस हों। इस प्रकार की प्रामाणिकता ही सच्चा सम्मान और पुरस्कार प्राप्त कराती है। नकली कृत्यों से केवल बाहरी दिखावा किया जा सकता है, परन्तु ऐसे कृत्यों में वह आत्मिक ऊर्जा नहीं होती जो सच्चे भावों से उत्पन्न होती है।
जीवन में भी हम अकसर दूसरों की नकल करते हैं या उनके तरीकों को अपनाने का प्रयास करते हैं, चाहे वह किसी धार्मिक आचरण में हो या जीवन के अन्य पहलुओं में।
सार - प्रत्येक व्यक्ति को अपनी राह स्वयं बनानी चाहिए और अपने भावनात्मक स्तर पर ईश्वर से जुड़ना चाहिए। किसी और के तरीके या आचारण को अपनाने से केवल बाहरी दिखावा होता है और उस प्रामाणिकता का अभाव रहता है जो सच्चे प्रेम, भक्ति और सेवा के लिए आवश्यक होती है।
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