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पत्थर का दर्द

Updated: Mar 26, 2023

डॉ. कृष्ण कांत श्रीवास्तव

बहुत पहले की बात है। एक शिल्पकार मूर्ति बनाने के लिए जंगल में पत्थर ढूंढने गया। वहाँ उसको एक बहुत ही अच्छा पत्थर मिल गया। जिसको देखकर वह बहुत खुश हुआ और वह सोचने लगा कि यह मूर्ति बनाने के लिए बहुत ही उपयुक्त है।
जब वह घर की ओर लौट रहा था, तो उसको एक और पत्थर मिला। शिल्पकार ने उस पत्थर को भी अपने साथ ले लिया। घर आकर उसने पत्थर पर अपने औजारों से कारीगरी करना प्रारंभ कर दिया।
औजारों की चोट जब पत्थर पर हुई, तो पत्थर बोला कि शिल्पकार मुझको छोड़ दो। तुम्हारे औजारों के प्रहार से मुझे बहुत दर्द हो रहा है। अगर तुम मुझ पर चोट करोगे तो मै बिखर कर अलग हो जाऊंगा। तुम किसी और पत्थर पर मूर्ति बना लो।
पत्थर की बात सुनकर शिल्पकार को दया आ गयी। उसने पत्थर को छोड़ दिया और दूसरे पत्थर को लेकर मूर्ति बनाने लगा। वह पत्थर कुछ नहीं बोला। कुछ समय में शिल्पकार ने उस पत्थर से बहुत अच्छी भगवान की मूर्ति बना दी।
गांव के लोग मूर्ति बनने के बाद उसको लेने आये। गांव वालों ने सोचा कि हमें नारियल फोड़ने के लिए एक और पत्थर की जरुरत होगी। उन्होंने वहाँ रखे पहले पत्थर को भी अपने साथ ले लिया। मूर्ति को ले जाकर उन्होंने मंदिर में सजा दिया और मूर्ति के सामने उसी पत्थर को रख दिया जिसने शिल्पकार से प्रहार करने को मना किया था।
अब जब भी कोई दर्शनार्थी मंदिर में दर्शन करने आता तो मूर्ति की फूलों से पूजा करता, दूध से स्नान कराता और उस पत्थर पर नारियल फोड़ता था। जब लोग उस पत्थर पर नारियल फोड़ते तो पत्थर बहुत परेशान होता।
उसको दर्द होता और वह चिल्लाता लेकिन कोई उसकी सुनने वाला नहीं था। एक दिन एकांत का समय पाकर उस पत्थर ने मूर्ति बने पत्थर से बात की और कहा कि तुम तो बड़े मजे से हो। लोग तुम्हारी पूजा करते है। तुमको दूध से स्नान कराते हैं और लड्डुओं का प्रसाद चढ़ाते हैं।
लेकिन मेरी तो किस्मत ही ख़राब है, मुझ पर लोग नारियल फोड़ कर जाते हैं। जिससे मुझे बड़ा कष्ट होता है। इस पर मूर्ति बने पत्थर ने कहा कि जब शिल्पकार तुम पर कारीगरी कर रहा था, यदि तुम उस समय उसको नहीं रोकते तो आज मेरी जगह तुम होते।
लेकिन तुमने आसान रास्ता चुना, इसलिए तुम अभी दुःख उठा रहे हो और पूरा जीवन यूं ही दुःख उठाते रहोगे। उस पत्थर को मूर्ति बने पत्थर की बात समझ आ गयी। उसने कहा कि अब से मैं भी कोई शिकायत नहीं करूँगा।
इसके बाद लोग आकर उस पर नारियल फोड़ते। नारियल टूटने से उस पर भी नारियल का पानी गिरता और अब लोग मूर्ति को प्रसाद का भोग लगाकर उस पत्थर पर रखने लगे।
सीख: जीवन के प्रथम पड़ाव में जो मनुष्य मेहनत करते हैं और कष्टों को सहकर अपने व्यक्तित्व का विकास करते हैं। उनका शेष जीवन सम्मान सहित आराम से व्यतीत होता है।
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