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पहला मानसून

एम.एस.ठाकरे

आज खरीददारी करने मार्केट गई थी। सराफा से निकली तो मुझे अकेला पाकर उसने मुझे आवाज दे दी। मयूरी ,,,,,मयूरी , रुक जाओ ... मैं तो डर गई। शादी के पहले भी सबके सामने उससे मिलने से डर लगता था। जाने सब किस नजर से देखते थे और आज तो यहां ससुराल में। मैंने उसे नजरअंदाज किया। तो वो फिर से मेरे सामने आ गया। रुक जा जरा। फिर ...मैंने नजरे चुराते हुए कहा.. नहीं बाबा जाने दो...।
लेकिन वह बिल्कुल पहले की तरह धीट था। धीरे-धीरे कदमों से मेरे साथ ही चल रहा था। एक बात तो बता। इतनी डरती क्यों हो मुझसे, उसने कहा। किसने कहा मैं डरती हूं। मैंने भी थोड़ा धीट बनते हुए उसे बोला। बताओ फिर भाग क्यों रही हो। वो बोला, “मैं कहां भाग रही हूं। बस तुम आने से पहले बताते नहीं हो ना। मैंने भी मन की बात कही।
क्या मतलब कुछ भी जैसे कि अगर बताता तो मुझसे मिलने बड़ी सज धज के आने वाली थी। तुम भी ना ....मैं थोड़ी उससे चिढ गई थी। और उसको नजरअंदाज करके आगे कदम बढ़ा दी। मन तो बहुत हो रहा था कि उसके साथ चलते-चलते बात करूं पर कुछ सोचते हूए तेज चलने लगी।
अरे .....मतलब बड़ी धीट हो तुम। हर साल मेरे लिए बचपन में लव लेटर लिखती थी। आज तो नहीं छोडूंगा तुम्हें और थोड़ा मेरे आगे आकर रास्ता रोक लिया। अरे मेरे सिरफिरे आशिक उसे लव लेटर नहीं। ऐसे (essay) कहते थे जो टीचर लिखवाती थी। मैंने सर को हाथ मारते हुए कहा, जाने दो मुझे। एक तो आज एक भी गाड़ी नहीं दिखाई दे रही। बस कुछ साधन मिल जाए नहीं तो यह मुझे पक्का पकड़ लेगा। फिर उसे चिढ़ाते हुए मैंने कहा, गाड़ी ना सही सामने टपरी है तो वहां पर चली जाती हूं। मैंने जीत की खुशी मनाते हुए कहा। लोग भी है वहां पर,,,
हाथ जोड़कर कह रही हूं तिरछी मुस्कान के साथ वहां मत आ जाना मुझे शर्मिंदा करने। मैंने उसे आंख दिखाकर डराना चाहा। इन लोगों से डर नहीं लगता तुम्हें मुझसे तो बड़ा डर रही है। वो थोड़ा नाराज होते हुए बोला। अगर तुम्हारे साथ रहूंगी तो ऐसे भी यह लोग मुझे नहीं छोड़ेंगे।
हां, वो तो है मेरे साथ तुम्हारी जोड़ी लगती भी तो खास है। उसने थोड़ा इतराते हुए कहा, “अब तो तुम्हें गले लगा ही लेता हूं। और वो धीरे-धीरे मेरे पास आ ही गया। मैं भी उसे मना नहीं कर पाई। आखिर चाहत तो मेरे मन में भी थी। मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा तुम नहीं सुधरोगे।”
सारी लोग-लाज छोड़कर मैं उसके साथ हो ली। थोड़ी देर बाद, अब जाने भी दो, मैंने कहा। ऐसे कैसे ....याद है तुम्हें एक बार स्कूल से छूटने के बाद तुम्हें और तुम्हारी सारी की सारी सखीओं को कैसे मजा चखाया था। उसने झूमते हुए कहा।
हंसते हुए मैंने कहा, “हां ...हां ...याद आ गया। पता नहीं कहां-कहां मुंह छुपाए घूम रहे थे हम सब उस दिन, घर आने पर मम्मी ने मुझे और दीदी को कितना डांटा था। मतलब तुम्हारी मां भी हद करती है मुझे कोई कोरोनावायरस हूआ था जो मेरे साथ खेलने भरसे ही तुम लोग बीमार हो जाती‌। लगता है तुम्हारी मां को भी मुझे मजा दिखाना होगा। उसने मस्ती में कहा।
अरे यार उनकी उम्र का तो लिहाज करो। वैसे पता है मेरे सिरफिरे मजनू यहां मां नहीं सासु मां है मेरी। हां पता है वहीं ना जिन्हें आचर पापड़ बनाना अच्छा लगता है। उसने असमंजस में कह दिया। तुम्हें कैसे पता। मैंने उसे डर से पूछा।
अभी-अभी तुम्हारे घर से ही आ रहा हूं। तुम्हारी सास, देखो रिस्पेक्ट से जरा, मैंने आंख दिखाते हुए कहा। मेरे डर के छत के चक्कर काट रही है। तुम्हारी सासू मां। शरारती मुस्कान के साथ उसने कहा। क्या तुम मेरे घर पर चले गए थोड़ा तो तरस खाते कुछ किया तो नहीं। मैंने परेशान होते हुए पूछा - नहीं नहीं बस डरा कर आया हूं। उसने मेरे इर्द-गिर्द घूमते हुए कहा।
अच्छा चलो अब जाने दो मुझे प्लीज। हां मैं क्या जाने दूंगा वहां देखो तुम्हारा जानू आ रहा है तुम्हें मुझसे बचाने मेरा दुश्मन लेकर छाता लेकर। जा उसके साथ वरना ये टपरी वाले देख ही रहे हैं। उसकी बातों में मेरे लिए चिंता थी। इतना कह वो जाने लगा तो मैंने उसे चिल्ला कर कहा रुक जाओ ना इनसे तो मिलो।
तो मुझसे बोला दिखाई नहीं दे रहा उसे मुझसे कितना डर लगता है रेनकोट पहन के आया है। इसका तो बदला लूंगा जब गुस्से में रहूंगा। मैंने भी उसे हंसते हुए अलविदा किया। मेरा पहला प्यार मेरा मानसून जिसका हर बार मुझे बेसब्री से इंतजार रहता है।

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