डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव
सुबह-सुबह आंख खुली तो बारिश की रिमझिम बूंदें पड़ते हुए देखकर सुधा खुशी से झूम उठी। कितनी पसंद है उसे ये बारिश और उसमें भीगना। बचपन से लेकर जवानी की दहलीज तक कितनी खुश होकर भीगती थी वो अपने घर में। जहां उसे भीगने से रोकने वाला कोई नहीं था, बल्कि सब उसे बारिश के लिए दीवानी कहते थे। ना कभी बाबूजी ने रोका और ना कभी मां ने। बस हमेशा यही कहा कि अपनी मर्यादा की सीमाओं को मत लांघना और फिर उसकी शादी हो गई।
यहां आकर भी उसे बारिश में भीगने का मन करता था। मगर शादी के पहले ही साल में एक बहु की सीमाओं में बंधी कभी चाहकर भी अपने मन की अपने जीवनसाथी मोहन से कुछ न कह पाई और सासूमां को कहने की इच्छा कैसे करती, जब उन्हें एकबार छतपर बारिश से भीगने से बचाने के तार से कपड़े उतार रही वो और उसकी सासूमां की नजर पड़ोसियों के यहां युवा जोड़े को बारिश में भीगते-हँसते देखकर उन्हें बेशर्म, बेहया और ना जाने क्या-क्या कहे जा रही थी। अगले साल आराध्या उसकी गोद में थी इसलिए वो खिड़की से बारिश की गिरती बूंदों का आनंद लेती रही।
ये सब उसके पति मोहन ने ना जाने कब और कैसे नोटिस कर लिया। इसलिए कभी बहाने से बाइक पर समान लेकर आने के लिए तो कभी किसी बहाने से वो उसे बारिश में भीगने का मौका दिलवा दिया करते। आज फिर से सुबह से बारिश हो रही है। वो भी मानसून की पहली बारिश। बाहर बरामदे में बैठकर अखबार पढ़ रहे मोहन के समीप पहुंच कर सुधा बोली, आज आफिस नहीं जाना क्या आपने।
नहीं आज छुट्टी है। भूल गयी आज वीरवार है वीकेंड आफ। कहकर मोहन दुबारा से अखबार पढ़ने लग गया। सुधा ने मोहन के हाथों से अखबार छीनकर बारिश की और इशारा किया तो मोहन ने मुस्कुरा कर बरामदे में दूसरी ओर बैठी मां की तरफ इशारा करते हुए कहा, कैसे।
सुधा ने इशारा करते हुए कहा मुझे नहीं पता। मोहन ने अपनी असर्मथता जताई तो सुधा मुंह बनाकर बोली....हूह...प्लीज कुछ कीजिए ना।
सुधा का रुआंसी चेहरा देखकर मोहन ने उसे इशारा करते हुए कहा, रुको कुछ करता हूं और अपनी बेटी आराध्या को इशारा करते हुए अपने पास बुलाया और उसके कान में कुछ कहा। आराध्या ने मुस्कुरा कर मां की और देखा और दोनों पैरों पर जोरों से ठुनक दी। ये देखकर सुधा सब समझ गई और विनती करने वाले अंदाज में मोहन से बोली सुनिए आरु बारिश में नहाने को पूछ रही है।
जाने दो.... पहली बारिश का थोड़ा आनंद उसे भी लेने दो। सुधा की ओर देखकर मोहन ने मुस्कुरा कर कहा। पापा की सहमति पाते ही आराध्या बरामदे के पार जा पहुंची और मस्त होकर भीगने लगी। तभी मोहन की माता जी बरामदे से उठते हुए बोली, आराध्या, रुको पहली बारिश है, बीमार पड़ जाओगी, सर्दी लगेगी सो अलग।
कापी-किताब निकाल लो और यहीं बैठकर बारिश का आनंद लो... चलो वापस आओ। लेकिन कौन सुनता, आराध्या तो हो गई-फुर्र और मस्त होकर भीगने लगी बारिश में।
आखिर ये देखकर मोहन सुधा से बोला, जाओ सुधा आराध्या को लेकर लाओ। सुधा का मन-मयूर नाच उठा यह सुनते ही। वह पल्लू सँभालती जा कूदी बारिश की फुहारों में और फिर भीगती हुई आराध्या को पकड़ने का नाटक हो गया शुरू। बेटी तो थी ही खेलने के मूड में वो और दूर भाग गई।
ये देखकर मोहन बोला, मैं लाता हूं मां...यह कहकर अखबार कुर्सी पर छोड़कर बिना ये सुने की मां आगे क्या कहेगी, वह भी बरामदे से उतर नीचे की ओर दौड़ गया। आराध्या काफी देर तक अपने मम्मी-पापा को दौड़ा-दौड़ा कर छकाती रही। दूर खडी बेटे-बहू की चालाकी समझकर मां दो पल वहीं खड़ी रही और उन सब के हंसते खिलखिलाते चेहरों को देखती रही। जैसे ही सुधा की नजर उस ओर गयी तो वह बस इतना ही बोल पाई... मां वो...
रहने दो। सब समझती हूं तुम्हें क्या लगता है ये बाल धूप में सफेद किए हैं मैंने। दुनिया देखी है और तुम तो मेरे बच्चे हो नस नस से वाकिफ हूं तुम्हारी।
भीग लो मगर शालीनता से और मर्यादा में। कहते हुए मां रसोई घर की और बढ़ी तो ये देखकर सुधा चौंक गई क्योंकि ये वक्त मां की चाय का होता है। इसलिए हकलाते हुए वह बोली...मां....आप रुकिए में अभी आपको चाय बनाकर देती हूं।
नहीं बेटा....कहा ना तुम भीगों। जब तुम मुझे मां की तरह आदर सम्मान देती हो तो बेटियों की तरह कहना भी मानों। मै समझती हूं क्यों बारिश में ही मोहन को समान की याद आती है। तुम्हें भीगना पसंद है ना। तुम मुझसे शर्म करती हो मै नाराज ना हो जाऊं सोचकर। सुधा ये घर मेरी बेटी का भी है, जो तुम हो। मगर बेटा बड़ों से शर्म और आदर तमीज ये सब आराध्या को भी सीखाना है और याद रखना बच्चे अपने बड़ों को देखकर ही सीखते हैं।
मां...आप रसोईघर में कयुं जा रहीं हैं आइए ना आप भी बारिश का आनंद लीजिए। सुधा ने मनुहार करते हुए कहा। हां आनंद तो मैं भी ले रहीं हूं बारिश का तुम बच्चों को हंसते खिलखिलाते हुए देखकर और इस आनंद को दोगुना करने के लिए ही में रसोईघर में जा रही हूं गर्मागर्म भजिया पकौड़ी तलने। मुस्कुरा कर मां ने जैसे ही ये कहा आराध्या जोरों से चिल्लाने लगी...या...हूं...
मगर फिर मां की और फिर दादी मां की ओर देखकर कानों को हाथ लगाकर सौरी कहने लगी। ये देखकर मां के साथ-साथ मोहन और सुधा आराध्या को गोद में लेकर खिलखिलाकर हंसने लगे।
*****
Comments