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पिता का सम्मान

विभा गुप्ता

"बाबूजी.., मुझे 'जिंदल एंटरप्राइज' में नौकरी मिल गई है।" खुशी-से चहकते हुए विमल ने अपने पिता को बताया तो वो सोच में पड़ गयें।
विमल के पिता मंगलू को उसके रिक्शाचालक पिता ने बड़ी मेहनत से पैसे जोड़-जोड़कर बीए की डिग्री दिलवाई थी ताकि उसे एक अच्छी नौकरी मिल सके। लेकिन बहुत जूते घिसने के बाद भी जब मंगलू को कोई नौकरी नहीं मिली तो वह एक कंपनी में चपरासी बन गया। पढ़ा-लिखा था और सलीके से बात करना भी जानता था, इसलिए उसे वहाँ तनख्वाह के साथ-साथ बहुत प्यार व सम्मान भी मिलता था। फिर जब दो बेटियों के बाद उसे एक बेटा हुआ तब उसने अपनी पत्नी से कहा, "जानकी, बाबूजी का सपना मैं तो पूरा नहीं कर सका लेकिन हमारा बेटा ज़रूर पूरा करेगा। देख लेना एक दिन ये इतना बड़ा अफ़सर बनेगा कि मैं भी इसे सैल्यूट मारूँगा।" तब उसकी पत्नी बहुत हँसी थी।
अब आज जब बेटा ऑफ़िसर बन गया हो तो वह चिंतित था। अगले दिन विमल ऑफ़िस पहुँचा और बॉस के केबिन में जाने लगा तो चपरासी की कुरसी पर अपने पिता को बैठे देखा तो चकित रह गया। पिता से नज़रें चुराता हुआ वह अपने बॉस से मिला और बाहर आकर अपने पिता को एक ओर ले जाकर तीखे स्वर में बोला, "बाबूजी, आप यहाँ की नौकरी छोड़ दीजिए। मेरे पिता एक चपरासी, मेरे लिये तो यह डूब मरने वाली बात होगी। आप समझ रहें हैं ना।"
"हाँ बेटा, समझ रहा हूँ।" कहकर मंगलू रुमाल से अपनी आँखों के कोरों को पोंछते हुए अपनी जगह पर आकर बैठ गये। थोड़ी देर बाद बॉस ने मंगलू को अंदर बुलाया और विमल को भी। विमल ने पिता को घूरकर देखा जैसे पूछ रहा हो - 'आप अभी तक गये नहीं?' तब बॉस बोले, "मिस्टर विमल, हम सभी जानते हैं कि आप मिस्टर मंगलू के बेटे हैं। आपको अपॉइंटमेंट लेटर देने के अगले दिन ही मिस्टर मंगलू अपना इस्तीफा-पत्र लेकर यहाँ आये थें लेकिन मैंने स्वीकार नहीं किया। आपका पिता कहलाने में इन्हें बहुत गर्व महसूस होता है लेकिन जिस व्यक्ति ने आपको पाल-पोसकर बड़ा किया, जिनकी ऊँगली पकड़कर आप यहाँ तक पहुँचे हैं, यदि उन्हें अपना पिता कहने में आपको शर्म महसूस होती है तो वाकई में, ये आपके लिये डूब मरने वाली बात है। मिस्टर विमल, जब आप इनके कंधों पर बैठकर स्कूल जाते थें, आपकी ज़रूरतों को पूरी करने के लिये ये स्वयं भूखे रहते थें तब आपको शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई। अब इनके यहाँ काम करने से आपकी नाक कटती है तो ये आपकी प्रॉब्लम है। इनकी नौकरी तो बरकरार ही रहेगी, आप शौक से जॉब छोड़कर जा सकते हैं। वैसे भी, जो इंसान अपने देवतुल्य पिता का सम्मान नहीं कर सकता है, वो अपने सहकर्मियों का सम्मान कैसे करेगा। नाउ, यू कैन गो (अब आप जा सकते हैं)।"
विमल के तो घड़ों पानी पड़ गया, हकलाते हुए बोला, "सॉरी सर! आई एक्सट्रीमली।"
"मिस्टर विमल, सॉरी अपने पिता को कहिये, आपने इनके सम्मान को ठेस पहुँचाई है।"
विवेक ने हाथ जोड़कर अपने पिता से माफ़ी माँगी। अब पिता-पुत्र एक साथ 'ज़िदल एंटरप्राइज' में काम करते हैं। मंगलू अपने अफ़सरों को अदब से 'सलाम सर' कहकर अपनी ड्यूटी करते हैं और विमल गर्व से मंगलू को 'मेरे पिता हैं' कहकर परिचय कराता है। देखने वाले कह उठते हैं- वाह...!

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