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पुरुषों का सौंदर्य

अर्चना पाण्डेय

मैं फिलहाल बात करना चाहती हूँ पुरुषों पर, जिनके सौंदर्य को हमेशा अनदेखा किया गया है। कुछ पुरुष ऐसे भी होते हैं जो ज़िन्दगी भर अपना काम ईमानदारी से करते हैं, भरपूर प्रेम करते हैं, और नारीवादी भी होते हैं।
तथाकथित नारीवादी युग में पुरुषों को सिर्फ दुश्मन मान लिया गया है और उन पर जमकर बरसा जाता है। हर बात पर जिस तरह से सारी महिलाएँ हमदर्दी की पात्र नहीं होती उसी तरह सारे पुरुष कोसने के लिए नहीं हैं। पुरुषों का अपना सौंदर्य है, फिर चाहे वो पिता के रूप में हो, पति के रूप में हो, दोस्त हो, प्रेमी हो, भाई हो या रास्ते से गुज़रता कोई भी पुरुष वो सिर्फ कमाकर देने वाली मशीन नहीं है। ज़िम्मेदारियों से दबकर खुद को वक़्त से पहले कमर झुकाकर बुजुर्ग की उपाधि पाने के लिए नहीं है। उसे रोना आएगा तो उसे भी रोने दीजिये ये कहकर उसके आंसू मत दबाइए कि तुम आदमी हो रोते हुए ज़रा देखो कैसे औरत जैसे लग रहे हो। उसे यह कहकर अकेला मत छोड़िए कि आदमी है, खुद सँभल जाएगा।
पुरुष भी भावुकता के उसी धरातल पर रहते हैं जहाँ औरत होती हैं। उन्हें भी उतना ही प्यार चाहिए जितना कि औरत को। अच्छा लगता है जब वो गले लगाते हैं और औरत का सिर सीधा उनके दिल को छूता है। इससे खूबसूरत और क्या होता होगा। प्रेम आप कभी अकेले कर नहीं सकते इसमें तो सदैव ही दो लोगों की ज़रूरत पड़ेगी। नारी सौंदर्य पर कितना कुछ कहा गया है लिखा गया है, पुरुषों की अवहेलना की गई है, हो सकता है उन पर भी कहा गया हो। लेकिन, जितना कहा जाना चाहिए वो अभी बाकी है। ये एक पुरुष का ही सौन्दर्य है कि उसमें नारी बसती है तभी तो शिव अर्द्धनारीश्वर हैं।
रोज़ की बातों में से सहेज कर देखिए आपके पुरुष आपके लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। रास्ते पर चलते वक़्त अगर वो आपको साइड में करके ये कहते हैं कि इधर चलो ये गाड़ी वालें देखकर नहीं चलाते और खुद उस खतरे को मोल ले लेते हैं, तब उनकी ख़ूबसूरती झलकती है। किसी दुकान पर अन्य पुरुषों की भीड़ देखकर आपको ये कहकर रोक देते हैं कि तुम रुको मैं ले आता हूँ बहुत भीड़ है, तब अच्छा लगता है ना। और तब कैसा लगता है, जब आपको रोता देखकर वो ये कहते हैं कि 'अरे रो क्यों रही हो किसी ने कुछ कहा क्या? मुझे बताओ अभी देखता हूँ उसको तो।' फिर कोई ये कह दे, 'शेर सुनो' तब क्या हो। कुछ पुरूष सिर्फ औऱ सिर्फ मोहब्बत के ही काबिल होते हैं।
आज भी हकीकत तो ये है कि औरतें उस लिहाज़ से बेहतर हैं कि काम करे‌ ना करे लेकिन पुरुष को कहाँ सहूलियत है कि घर बैठ जाए। कड़वा है लेकिन सच है।
आप ढूँढकर देख लीजिए, बहुत कुछ मिल जाएगा जिसके लिए पुरुषों का धन्यवाद किया जा सके......!!

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