top of page

पूर्णत्व

शिवम् की शादी की उम्र बीती जा रही थी। मां उसे समझाती- "बेटे, स्त्री घर की ऊर्जा होती है। उसके बिना पुरुष के लिए अकेले जीवन बिताना बहुत ही दुष्कर है। जवानी तो अकेले बीत जाएगी, लेकिन बुढ़ापे में पत्नी के सहारे की ज़रूरत पड़ेगी। मेरा कहा मान और शादी के लिए हामी भर दे।"
शिवम् ने अपने घर-परिवार, आस-पड़ोस और समाज में स्त्री चरित्रों को देखा था। इसलिए उसका मन शादी करने के लिए राज़ी ही नहीं होता था। आखिर एक दिन मां ने उसे समझा कर कुसुम नामक सुंदर और सुशील कन्या के साथ उसकी सगाई कर दी।
एक दिन शिवम् को तेज़ बुखार आया। शिवम- "मां दोनों भाई-भाभी को फोन किया, लेकिन कोई नहीं आया।"
मां- "बेटे, यही संसार है। घर पर बैठे रहने से तबीयत और भी बिगड़ जाएगी। मैं कुसुम को फोन कर देती हूं। तू रिक्शा से हॉस्पिटल चला जा।"
ख़बर मिलते ही कुसुम तुरंत हॉस्पिटल पहुंच गई और शिवम् को संभाल लिया।
कुसुम- "मैंने डॉक्टर से मिलकर सारी बातचीत कर ली है। आपके सारे रिपोर्ट्स हो गएं हैं। सब कुछ नोर्मल है।"
शिवम्- "कुसुम, आज़ तुम न होती तो.....।"
कुसुम- "डाक्टर ने शाम तक रूकने की सलाह दी है। मैं सारी दवाइयां, मूंग का पानी और फल आदि ले आई हूं। आप आराम कीजिए।"
शिवम्- "पूरे बदन और जोड़ों में काफ़ी दर्द हो रहा है।"
कुसुम- "मैं महामृत्युंजय मंत्र के जाप के साथ आपके पूरे शरीर पर मालिश कर देती हूं। थोड़ी ही देर में आपको काफ़ी राहत महसूस होगी।"
शाम होते ही शिवम् की तबीयत ठीक हो गई। डॉक्टर ने दवाइयां देकर घर वापस जाने की अनुमति दे दी। कुसुम ने उसका सारा सामान पैक कर दिया। शिवम् एकटक उसके के सामने देखता ही रहा।
कुसुम- "अरे! आप ऐसे क्यों देख रहे हैं?"
शिवम- "कुसुम, मेरे पास शब्द ही नहीं है कि मैं कैसे तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं?"
इतना कहकर शिवम ने कुसुम को अपनी बाहों में जकड़ लिया और बोला- "आज़ तुमने अपनी सेवा और समर्पण भाव से यह साबित कर दिया कि सचमुच नारी बिना नर है आधा-अधूरा। आज़ तक मैं अधूरा था, लेकिन तुमने मुझे पूर्णत्व प्रदान कर किया।"
शाम को मां अकेली हॉस्पिटल पहुंच गई। हमेशा गंभीर मुद्रा में रहने वाले शिवम् के चेहरे पर हंसी की रेखाएं और कुसुम के साथ उसके तालमेल को देखकर ख़ुशी के कारण मां की आंखें भर आईं।
***********
0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page