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प्यास सच्ची गिलास झूठा

विजया डालमिया

अब मुझे तुम पर विश्वास नहीं रहा...छला है तुमने मुझे ....कहकर तेजी से सुमि रूम की तरफ बढ़ चली। प्लीज सुमि .... प्लीज .. मेरी एक बार पूरी बात तो सुन लो। यह मेरी आखिरी गलती है ....प्लीज। अपने सुभाष को माफ कर दो ना... कहकर वह बार-बार गिड़गिड़ा रहा था, किंतु सुमि ने दरवाजा उसके मुंह पर बंद करते हुए कहा... अब कभी नहीं... अब सब खत्म। मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनना चाहती। अब मुझे तुम्हारी किसी बात पर विश्वास नहीं रहा ....और फूट-फूट कर रो पड़ी। उधर सुभाष थका-हारा लूटा हुआ सा खड़ा था। इधर सिमी खुद को लूटा हुआ महसूस कर रही थी। इतने समय से जिसे भगवान का दर्जा दिया। आँख मूंदकर जिसकी हर बात मानी। कभी किसी बात का विरोध तक नहीं किया। उसी ने आज उसे एक गहरा धक्का दे दिया।
यूँ तो सुभाष छोटी-छोटी बातों पर गोल घूमाता था, पर वह हँसी-मजाक की तरह ही होती थी। सिमी भी क्षणिक झूठ-मूठ की नाराजगी रखती और फिर मान जाती। एक अजनबी अनजान शहर से आकर उसके दिल के बेहद करीब हो गया था। उसने अपने सुबह-शाम उसके नाम और रातें उसके सपनों के नाम कर दी थी और आज अचानक सुभाष का अतीत सिमी के सामने आ खड़ा हुआ। सिमी ने कुछ रोज पहले ही तो सुभाष से पूछा था.... कहीं कोई ऐसी बात तो नहीं है ना तुम्हारी लाइफ में जो तुमने मुझसे छुपा रखी है? मगर उस जालिम ने बड़ी चालाकी से मुस्कुराते हुए अपने चिरपरिचित अंदाज में जवाब दिया ....नहीं यार! मैं तो तुम्हारे साथ एकदम ट्रांसपेरेंसी से रहता हूँ ...और आज एक अनजान लड़की दोनों के बीच आ खड़ी हुई जिससे सिमी जरूर अनजान थी पर सुभाष नहीं।
....ओह सुभाष क्यों किया तुमने ऐसा? अब मेरी सांसे चल रही है इसलिए जिंदा हूँ। लेकिन सांसों के चलने को जिंदगी नहीं कह सकते ना। दिल के टूटने की कोई आवाज नहीं होती, लेकिन जिसका दिल टूटता है उसकी आवाज जरूर बंद हो जाती है। आँखों में नमी पर होठों पर ना ही शिकायत है ना ही सिसकी है। बस एक खामोशी दूर तक पसरी है। जिसकी आवाज से मैं जी जाती थी, उसी आवाज ने मुझे जीते जी मार दिया। किसी का साथ पहले आदत, फिर जरूरत बन जाता है। अब मैंने अपनी आदत बदल ली। सुभाष तुम जहाँ रहो खुश रहो। आज मैं फिर हमसे ...मैं... होकर रह गई। मेरी प्यास सच्ची थी मगर गिलास झूठा था... कहकर सिमी ने एक गहरी सांस ली और चल पड़ी उस रास्ते की तरफ जिसकी कोई मंजिल न थी।

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