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प्रेमा

सरोजनी माथुर

प्रेमा एक साधारण नयन नक्श वाली महिला है, उसे न ही ब्रांडेड कपड़ो का शौक है और न ही किसी प्रकार के सजने संवरने का। पूरी सोसाइटी में औरते उसका मजाक उड़ाया करती हैं। ऐसा नहीं की प्रेमा या उसके परिवार वालों को पता नही चलता है, पर वो बेवजह के बहस में पड़ना नही चाहते हैं।
वैसे तो प्रेमा सरकारी स्कूल में टीचर है, तो भी वह स्कूल जाते समय, सास के कहने पर लिपिस्टिक लगा लेती है और वो भी बिना मैचिंग के। स्कूल में उसकी साथी टीचर्स मजाक उड़ाती हैं तो वह कहती है।" मुझे फर्क नही पड़ता, वैसे भी सज संवर कर क्या फर्क पड़ जायेगा, जैसी हूं वही रहूंगी।"
सब से बड़ी बात ये है कि उसका पति महेंद्र स्मार्ट और सुंदर है, उसके बावजूद उसने ऐसी औरत से शादी की। इस बात की सबको बहुत टेंशन होती है, और तो और महेंद्र उसे दिल से चाहते हैं। उसका पूरा परिवार ही उसका मुरीद हैं, और इसी वजह से सोसाइटी की औरते और भी जली भुनी रहती थी। जबकि वो सुंदर स्मार्ट है, सब कुछ करने के बाद भी उनके घरों में रोज झगड़े होते थे।
सोसाइटी की महिला अध्यक्ष सुनीता जो अपने आप को बहुत ही सुंदर और पढ़ी लिखी मानती हैं। वह अक्सर इस बात पर डिस्कस किया करती थी, कि इस प्रेमा ने अपने परिवार पर जरूर कोई जादू किया है, जो सब इसके अनुसार चलते हैं। ना ही कभी झगड़ा होता है और न ही कोई ऊंची आवाज में कहा सुनी। उसके सास ससुर को लोग कई बार भड़काने के लिए कहते हैं कि आप का लड़का इतना सुंदर स्मार्ट है, तो क्या सोचकर आपने ऐसी लड़की से शादी कर दी। लगता है दहेज ज्यादा मिला होगा, या कुछ और होगा। जितने मुंह उतनी बातें होती हैं, पर इन लोगो को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
एक दिन सुनीता और दूसरी औरते मौका पाकर प्रेमा से पूछती है, कि "ऐसा क्या जादू किया है उसने घर वालो पर जो उससे इतने अच्छे से रहते हैं।"
वह मुस्कराकर रह जाती है, सब औरते मन मसोस कर रह जाती हैं, क्योंकि उनका कोई दाव नही चलता।
एक दिन सुनीता का बेटा बोलता है "मम्मी मुझे एक मैथ्स का क्वेश्चन समझ नहीं आ रहा है।”
सुनीता को ध्यान आता है कि प्रेमा भी मैथ्स टीचर है और आज तो छुट्टी भी है। वह घर पर ही होगी, वह बेटे को लेकर उसके घर जाती है।
प्रेमा बड़ी खुश होकर उसका स्वागत करती है। उसे हाल में बैठाती है। सुनीता देखती है कि पूरा घर एकदम साफ सुथरा है। उसके ससुर और सास अंदर के कमरे में हैं। वह चाय और बिस्किट नमकीन लेकर आती है, और इनके सामने रख कर फिर ससुर और सास को देकर आती है।
सुनीता सोचती है कि उसके ससुर दस बार बोलते हैं तब वह चाय देती है। वह भी चार बातें सुनाकर। उसी समय महेंद्र और बच्चे आते हैं। शायद कुछ सामान लेने गए थे। प्रेमा उन्हें भी चाय देती है, और सारा सामान चेक करके अंदर रखती है।
सुनीता तो पति के लाए हुए सामानों में पचास नुस्ख निकालती है। कई बार तो वह सामान उसके सामने फेंक तक देती थी, जिस कारण दो दो दिन बात नहीं होती थी।
प्रेमा उससे आकर कहती है, दीदी बस पांच मिनट, मैं जरा इन लोगो को नाश्ता देकर फिर इसे बता देती हूं। जबकि वह उसे टाल भी देती तो वह क्या करती। वह खुद घर आए लोगो को दरवाजे से ही टाल देती है। कई बार तो उसने उन्हें ये भी कह दिया था कि इस तरह घर न आया करो। पर प्रेमा को देख उसे लगता है वह तो बहुत गलत विचार रखती है। तभी प्रेमा सबको नाश्ता देकर उन दोनों के लिए भी लाती है। सुनीता देखती हैं कि प्रेमा सब का बराबर ख्याल रखती है। जो काम वह उसके पति के कई बार बोलने पर नही करती है वह बिना बोले कर रही थी।
सुनीता के मना करने के बाद भी वह उन्हें जबरदस्ती नाश्ता खाने को कहती है। फिर वही बैठ उसके बेटे का मैथ्स देखने लगती है, और उसे समझाने लगती है। इस बीच उसके ससुर दो बार बुलाते हैं, और पति और बच्चे भी बुलाते हैं, पर उसके चेहरे पर मुस्कान ही रहती है।
सुनीता सोचती है, कि "इतने देर में तो वह घर के सभी मेंबर्स को सुना चुकी होती। कितना बड़ा फर्क था, उसमें और प्रेमा में। वह पढ़ी लिखी उससे तो ज्यादा ही थी और वह भी टीचर है। उसे अहसास होता है कि क्यों उसके पति और घर वाले उसे पसंद करते हैं।"
प्रेमा तब तक उसके बेटे को सीखा चुकी थी। बेटा खुश होकर थैंक्स कहता है तो वह बोलती है "बेटा जब भी कोई प्रोब्लम हो आ जाया करो शाम को।"
सुनीता उसको धन्यवाद देती है, तो वह कहती है अरे क्या दीदी इसमें धन्यवाद किस बात का। आपका घर है कभी भी आइए। उसके इस सादगी की वह भी कायल होती है, आज उसे समझ में आता है कि असली सुंदरता क्या है, वह जाती है।
नेक्स्ट वीक में सोसाइटी में बेस्ट वूमेन ऑफ ईयर का अवार्ड देना था। उसमें जब प्रेमा का नाम घोषित होता है तो आधी औरतों को चक्कर आ जाता है। बेचारी इतनी सज धज कर ब्यूटी पार्लर से आई थी, और बाकी आधी ये कहने लगती हैं कि जरूर सुनीता मेडम का दिमाग खराब हो गया है।
सुनीता कहती है "मैंने सूरत और नखरे देखकर अवार्ड नही दिया। सच जानकर दिया है। हम सभी को इनसे सीखने की जरूरत है। आज मैं भी इनके नक्से कदम पर चल रही हूं तो मेरे घर पर भी शांति हो गई है।"
सभी औरतें प्रेमा को देखती हैं। वह हाथ जोड़कर कहती है कि मैं तो बस अपने परिवार की सेवा करती हूं, बाकी मुझे कुछ और नहीं आता है।

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