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फिर एक बार…

रचना कंडवाल

सुजाता ने आज दस साल बाद दोबारा "बसेरा" में कदम रखा था। ये वही "बसेरा" था जहां कभी वह दुल्हन बन कर आई थी। ये कभी उसका घर हुआ करता था। उसके ससुर रिटायर्ड जज अविनाश शर्मा की कोठी उसके पति आइपीएस निशांत शर्मा का घर। घर में शोक पसरा हुआ था, मृत शरीर को ले जाने की तैयारी थी। मरने वाली और कोई नहीं उसके पति की दूसरी पत्नी ज्योति थी।
वो जाकर अपनी सास के पास खड़ी हो गई। मां आंखों में आंसू भरे उसे देखने लगी। उनकी गोद में ज्योति का बेटा आदित्य दुबका हुआ था। उम्र आठ साल थी। ऐसा लग रहा था कि आसपास के माहौल से बहुत डरा हुआ था। निशांत की नजर जैसे ही उस पर पड़ी, वह अवाक रह गए। ये कुछ ऐसा था जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी। मृत शरीर अपनी अंतिम यात्रा पर निकल पडा़ था।
सुजाता अपनी सास को सहारा दे कर अंदर ले आयी। सास ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया "सुजाता तुमने मेरा मान रख लिया बेटा। अनु कैसी है?" बोलते हुए गला भर आया था उनका।
"ठीक है मां उसे नानी के पास छोड़कर आयी हूं।"
"सुजाता मेरा दिल बहुत घबरा रहा है। आदित्य का क्या होगा?"
"मां आप ज्यादा न बोलें, आपकी तबीयत खराब हो जाएगी।"
सुजाता उन्हें तसल्ली देती रही, पर उसके मन में तूफान उमड़ रहा था। ये वही घर था जहां उसके पति ने उसे ठुकराया था। और ज्योति से शादी कर ली थी। वह भी उस कंडीशन में जब वो मां बनने वाली थी। निशांत बेटी के जन्म के बाद एक बार भी अपनी बेटी को देखने नहीं आए थे। उन्होंने तो ये भी जानना जरूरी नहीं समझा था कि मां, बेटी जिंदा हैं या मर गईं। इस घर में सिर्फ एक मां ही थीं जिन्होंने उसे बेहद प्यार दिया था। जो उसके साथ डट कर खड़ी थीं। उन्होंने बेटे को बहुत रोकने की कोशिश की थी, पर रोक नहीं सकी थी।
सुजाता ने ही उन्हें मना कर दिया था। "मां मैं अब इतना नीचे नहीं गिर सकती कि निशांत के साथ रहूं। जब उन्होंने मेरी जगह किसी और को दे दी है।" उसने आसानी से निशांत को आजाद कर दिया था।

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