मंजू यादव 'किरण'
फूलवती जी क्लब में होने वाले सत्संग से जब शाम को घर लौटी तो उनकी बड़ी बेटी रूचि ने मामा के लड़के की शादी का कार्ड दिया और बोली, "अम्मा! जब तुम सत्संग के लिए चली गयी थीं, तभी डाकिया ये शादी का कार्ड देकर चला गया था।"
फूलवती जी शादी का कार्ड देखकर बहुत खुश हुईं, सोचने लगीं उस दिन भाई फोन पर बता तो रहा था कि विजय की शादी पक्की हो गई है और तुमको फुल्ला जीजी छः-सात दिन पहले आना पड़ेगा क्योंकि बुआ को शादी में बहुत नेक चार करना पड़ता है।
फूलवती जी अपने मायके जाने के लिए हमेशा उत्साहित रहती थीं, और उत्साहित क्यों न हो, उनकी अम्मा अपनी प्यारी बेटी फूलवती का इंतजार जो करती थीं। उनके मायके में सब लोग उन्हें फुल्ला के नाम से ही बुलाते थे। उनकी दादी ने उनका ये नाम दिया था क्योंकि वो थीं ही गोल-मटोल। रात का खाने आदि से निबटने के बाद वह अपने पति अशोक को शादी का कार्ड दिखाते हुए बोलीं, देखो! नितिन के लड़के की शादी का कार्ड आया है, मैं तो शादी में पांच-छः दिन पहले से चली जाऊंगी, तुम बच्चों को लेकर शादी के दिन आ जाना, इससे बच्चों की पढ़ाई भी खराब नहीं होगी।"
अशोक जी तुरंत तुनक कर बोले, "सुनो! तुम्हें शादी में जाना है जाओ और चाहे तो बच्चों को भी अपने साथ लेकर चली जाना। मुझसे शादी में आने के लिए न कहना क्योंकि पिछली शादी में उन लोगों ने मेरे साथ जो व्यवहार किया था, वो मैं अभी तक भूला नहीं हूं।"
तुम तो यही खैर मनाओ कि तुमको और बच्चों को वहां जाने से मना नहीं कर रहा हूं। फूलवती जी ने अपने पति को बहुत समझाया कि शादी में इतने रिश्तेदार आते हैं थोड़ी बहुत कमी-बेशी हो जाये तो बुरा नहीं मानना चाहिए और तुमको तो वो सब कितना मानते हैं। पर अशोक का मूड किसी तरह ठीक नहीं हुआ।
पांच-छः दिन बाद फूलवती जी अकेले ही अपने मायके शादी वाले दिन पहुंच गईं थीं, भाई और भाभी ने जब उनको अकेला आया देखा तो वो लोग बोले, "फुल्ला जीजी! तुम अकेली ही आयी हो, बच्चे और जीजाजी नहीं आये।"
फूलवती की अम्मा भी फूलवती को देखकर बहुत खुश हो गईं, पर दामाद के न आने से मायूस भी हो गईं थीं। बच्चों की फुल्ला बुआ चाय पीते हुए बोलीं, "देखो भाई! मुझको आना था मैं आ गई, तुम्हारे जीजाजी पिछली शादी से अभी तक नाराज़ बैठे हैं, हो सकता है शायद बारात में आ जाये।"
मैंने उनको समझाया तो बहुत है कि आजकल जमाना गुस्सा होने का नहीं है, लेकिन उनकी समझ से ये बात बाहर है। आजकल वो जमाना है कि जो शादी में जो गुस्सा है वो गुस्सा बैठा रहे, अब मान-मनौव्वल के जमाने लद गये, आओ न आओ किसी की शादी रुकती तो है नहीं। फूलवती अकेले ही अपने भतीजे की शादी करके अपने घर भी लौट आईं, पर उनके पति शादी में नहीं गये और न ही उन्होंने अपने बच्चों को भेजा।
फूलवती शादी से लौटने के बाद से कुछ दिनों अपने घर अनमनी सी रहीं और सोचती रहीं, शादी-ब्याह में ऐसी रूठा-मनती तो चलती रहती है, कभी फूफा रूठे, कभी मौसी रूठीं, कभी नानी रूठीं, कभी-कभी चाची-ताई भी रूठ जाती हैं। सबको मनाते रहो, पर अब वो जमाना चला गया, पहले किसी खास रिश्तेदार के न आने से नाक कट जाती थी। अब तो ऐसा जमाना आ गया है कि जो आ जाये वो ठीक है और जो न आए वो भी ठीक है, आज के जमाने में कोई किसी को मनाता नहीं है, पहले वाली सारी बातें अब खत्म हो गयीं हैं। उनके भाइयों ने भी अपने जीजाजी को एक बार भी आने के लिए फोन नहीं किया।
ये सब सोचकर उनका मन बहुत दिनों तक खिन्न रहा। उनके ज़हन से अभी तक ये बात निकल नहीं रही है कि आज भी कुछ खास रिश्तों की लाज तो हर घर-परिवार के लोगों को रखनी ही चाहिए।
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