सुनीता मुखर्जी "श्रुति"
लौट आना फगुआ से पहले
सँग फूल पलाश के ले आना
बेरंग पल बीत रहे बन दुष्कर
सुर्ख गुलाल बन बिखरा जाना।
हर लम्हें गुजरे पतझड़ बनकर
नव उमंग पल्लवित कर जाना
बेजान शुष्क पथरीली राहों में
नेह अथाह सप्तसिंधु बन जाना।
मुरझाई साख मुस्काने लगी
पुष्प, पात टहनी लगे सजाने
कुदरत भांप गई द्रुम मनोदशा
कानन हरित बयार लगे बहाने।
सतरंगी इंद्रधनुष के रंगों से
चंद रंग चुरा कर तुम ले आना
ओढ़ी विरहनी मर्म चुनरिया
रंगों से सरोबार तुम कर जाना।
लज्जा से रंग गए सुर्ख कपोल
मधुमास की मादकता ले आना
सब मिल पिय संग खेले होली
तुम फूल पलाश के ले आना।
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