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बंद मुट्ठी

दिवाकर पांडे

आज़ मुनिया ने अपना और अपनी सास का किचिन हमेशा के लिए अलग कर लिया यह कहते हुए कि अब हमसे आपकी न नुकर और टोका-टाकी और नहीं सही जायेगी।
देखने में ये भले अच्छा ना लगे पर सास को तो जैसे मन की मुराद मिल गई। जबसे बहु घर में आई है घर के काम और बढ़ गए कम तो नहीं हुए क्योंकि बहु ने कभी भी घर के कामों में रुचि नहीं दिखाई और न ही हमारे प्रति कोई अपनापन।
जब देखो अपना सजना संवरना और मोबाइल पर अपने दोस्तों से घंटों बातें करना। और जब जी में आए उठकर मायके चल देना। बेटा भी उसकी इन हरकतों का विरोध नहीं करता। वह तो जैसे अपनी पत्नी के रूप सौंदर्य का गुलाम होकर रह गया है।
सास अपने किचिन में कुछ पकाने की तैयारी कर रही थी कि उनकी रिश्ते की ननद अचानक उनके घर आ गयी।
रामकली भाभी क्या कर रही हो? खाना पकाने की तैयारी कर रही हूं जीजी। ऐसा कहते हुए रामकली ने ननद के चरण स्पर्श कर लिए।
आपकी बहुरानी कहां हैं?
होंगी अपने कमरे में। क्यों? कुछ बात है क्या?
हां, मैने बस इतना ही कहा कि बहु रोज-रोज ये जंक फूड, ये पैकेट वाली चीजें, बाहर का खाना तुम्हारी और तुम्हारे पेट में पल रहे बच्चे की सेहत के लिए ठीक नहीं हैं मेरा इतना कहना बहु को नागवार गुजरा और उसने मुझसे बात करना बंद कर दिया और आज तो किचिन भी अलग हो गया।
भाभी आपकी बहु इस शहर के प्रतिष्ठित शंभूदयाल जी की बेटी है ना?
हां,, वही है। वह तो बड़ी सुंदर और बहुत पढ़ी लिखी है।
मुनिया की योग्यता और सुंदरता पर मुग्ध होकर ही एक बार हमने अपने बेटे का विवाह प्रस्ताव उनके घर भेजा था। काफी अनुनय विनय के बाद भी बात ना बन सकी। बाद में पता चला कि लड़के का रंग सांवला है। हमने सोचा था कि पढ़ी-लिखी बहु आएगी तो घर संवर जायेगा परन्तु आपकी बातें सुनकर तो लग रहा है कि जो हुआ सो अच्छा ही हुआ।
अब हम कह सकते हैं कि "हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती।"
रामकली ने एक लंबी सांस भरी और बोली हां, जीजी किसी ने सच ही कहा है कि बन्द मुट्ठी लाख की खुल जाए तो खाक की।

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