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बचपन ना छीने

विभा गुप्ता

मेरे पति का जबलपुर में तबादला हुआ था। शहर और वहाँ के लोग, दोनों मेरे लिये नये थे। बेटे का जिस स्कूल में एडमिशन करवाया था, उसी स्कूल के एक विद्यार्थी राघव का घर मेरी कॉलोनी में था। इत्तिफ़ाक से वह भी पाँचवीं क्लास में पढ़ता था। जान-पहचान बढ़ाने के उद्देश्य से एक दिन मैंने उनके घर की घंटी बजा दी।
एक बच्चे के साथ अनजान महिला को देखकर राघव की मम्मी अचकचा गईं। मैंने उन्हें अपना परिचय देते हुए कहा कि मेरा बेटा नमन और राघव एक ही स्कूल और एक ही क्लास में हैं तो...।
"हाँ-हाँ...प्लीज़ कम..।" कहते हुए उन्होंने हमें अंदर बिठाया। उस वक्त शाम के चार बज रहे थे। राघव दिखा नहीं तो मैंने सोचा, शायद बाहर खेलने गया होगा। फिर भी मैंने पूछ लिया, "मिसेज़ चंद्रा, राघव दिख नहीं रहा है, नमन उसके साथ खेलता। वह कहीं खेलने गया है क्या?"
"इस वक्त खेल! नहीं मिसेज़ गुप्ता, इस समय तो राघव अपनी पढ़ाई करता है। मैं राघव को बाहर खेलने कम ही भेजती हूँ। कितना समय बर्बाद होता है और फिर बाहर कितनी डस्ट है, बीमार पड़ गया तो।"
मैं उनके तर्क सुनकर हैरान थी। पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाले छोटे बच्चे पर इतना बोझ। मैंने कहा कि अच्छा ठीक है, एक मिनट के लिये बुला दीजिये, हम उससे मिल तो लें। बेमन-से उन्होंने राघव को आवाज़ दी। उसके बिखरे बाल, उतरा चेहरा और मुख पर तनाव देखकर मैं चकित रह गई। नमन के किसी बात का जवाब उसने सही से नहीं दिया। वह कुछ डरा-डरा हुआ भी था।
वहाँ से वापस आने पर मेरी आँखों के सामने मासूम राघव का उदास चेहरा घूमता रहा। नमन ने भी मुझे बताया कि स्कूल में भी लंच-ब्रेक में राघव अकेले ही बैठा रहता है।
कुछ दिनों के बाद नमन की क्लास में मैथ्स और हिन्दी विषय के टेस्ट हुए। राघव का मैथ्स में नमन से एक नंबर कम आया तो मिसेज़ चंद्रा परेशान हो गईं। उन्होंने तुरंत मुझे फ़ोन किया, "मिसेज़ गुप्ता, मेरा राघव दिनभर पढ़ता है और आपके नमन को हमने हमेशा खेलते ही देखा है, फिर उसके नंबर राघव से ज़्यादा कैसे आ गये।" उनके स्वर में चिंता के साथ-साथ क्रोध का भी पुट था।"
मैंने कहा, "मिसेज़ चंद्रा, शांत हो जाइये। एक अंक कम-अधिक होने से बच्चे की बुद्धिमता में कोई फ़र्क नहीं पड़ता। रही बात खेलने की तो उससे बच्चे के शरीर की माँस-पेशियाँ मजबूत होती है। पसीने के साथ शरीर की आंतरिक गंदगी भी बाहर निकल जाती है। बच्चे आपस में मिलते हैं तो उनमें आपसी सहयोग की भावना विकसित होती है। विचारों के आदान-प्रदान से बच्चे नई-नई बातें सीखते हैं। खेलने से उनका मन प्रसन्न होता है, तब वे दोगुनी मेहनत से अपने स्कूल की पढ़ाई करते हैं। हर वक्त पढ़ो-पढ़ो कहकर हमें उनका बचपन नहीं छीनना चाहिये। खेलने से बच्चे बर्बाद होते तो कपिलदेव- सचिन जैसे खिलाड़ी हमारे देश को कैसे मिलते।"
मैंने एक गहरी साँस ली और फिर उनसे कहा, "मिसेज़ चंद्रा, आपने महान वैज्ञानिक थामस अल्वा एडिसन का नाम तो सुना ही होगा। खेल-खेल में ही उन्होंने कितने आविष्कार कर डाले थे। मैं तो कहती हूँ कि आप राघव को भी...।"
"ठीक है -ठीक है, मैं समझ गई मिसेज़ गुप्ता।" उनके तीखे स्वर से मैं समझ गई कि मेरे भाषण से वह पक गयी थीं। दो दिन के बाद नमन ने मुझे बताया कि मम्मी, आज तो राघव भी हमारे साथ खेला था। सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा।
अगले महीने फिर से नमन-राघव की परीक्षा हुई। रिजल्ट मिलने के बाद मिसेज़ चंद्रा मेरे घर आईं और मुझे मिठाई का डिब्बा थमाते हुए बोली, "थैंक यू मिसेज़ गुप्ता। आपकी वजह से राघव ने इस परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किये हैं। वह खेलने के बाद बहुत खुश होकर पढ़ाई करता है, मुझसे और अपने पापा से हर बात शेयर भी करने लगा है। थैंक यू सो मच!" उनके चेहरे पर खुशी देखकर मुझे भी बहुत अच्छा लगा। बच्चे तो वो नन्हीं-नन्हीं कलियाँ हैं जिन्हें खिलने और फूल बनने के लिये स्वछन्द वातावरण की आवश्यकता होती है। बंद कमरे में तो वे खिलने से पहले ही कुम्हला जाते हैं।

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