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बटवारा

लक्ष्मी कुमावत

आज घर में एक छोटा सा फंक्शन था। नेहा ने अभी अट्ठाईस दिन पहले ही एक बेटी को जन्म दिया है, बस उसी का कुआं पूजन था। नेहा के पति समीर बिजनेस मीटिंग के कारण बाहर गए हुए थे। इस कारण ज्यादा बड़ा प्रोग्राम नहीं किया गया। बस कुछ खास रिश्तेदार को बुलाया गया था।
नेहा अपने कमरे में अपनी अट्ठाईस दिन की बेटी माही को दूध पिला रही थी कि उसकी छोटी बहन आरती ने उसके कमरे में प्रवेश किया। उसे देखते ही नेहा बोली, "अरे आरती इतनी जल्दी खाना खा भी लिया तूने। अभी तो गई थी बाहर।"
"नहीं दीदी, अभी बाहर और मेहमान खाना खा रहे हैं इसलिए मैं अंदर आ गई।" उसकी बात सुनकर नेहा थोड़ी हैरान होते हुए बोली, "अच्छा! फिर पापा कहां है?"
"पापा बाहर बरामदे में बैठे हुए हैं"
"अकेले?"
अचानक नेहा के इस संक्षिप्त सवाल से आरती झेंप गई। पर बोली कुछ नहीं। नेहा को समझते देर नहीं लगी कि पापा इन बड़े लोगों के बीच में खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं। या फिर शायद उन्हें जानबूझकर अकेला महसूस कराया जा रहा है।
समीर और नेहा की लव मैरिज थी। समीर एक अमीर घर का बेटा था, वही नेहा एक मध्यम वर्गीय परिवार की बेटी। शादी होकर जब ससुराल आई तो ससुराल में सास तो नहीं थी, पर एक जेठानी थी। जो अपनी पूरी मनमानी करती है। अपने आगे तो वो नेहा को कुछ भी नहीं समझती थी। कारण सिर्फ इतना सा था कि वो एक अमीर घराने की बेटी थी।
समीर अपने बड़े भाई रजत के साथ ही पारिवारिक बिज़नेस संभालता था। रजत जहां शहर में रहकर बिजनेस संभालता था, वही समीर को अक्सर बिजनेस मीटिंग्स के लिए बाहर जाना पड़ता था। घर की बागडोर पूरी तरह से उसकी जेठानी सुप्रिया के हाथों में थी।
नेहा के आने के बाद सुप्रिया अपने आप को किसी सास से कम नहीं समझती थी। खुद तो दिन भर आराम करती है और नेहा पर हुकुम चलाती थी। हालांकि घर में नौकर चाकर थे पर सुप्रिया हमेशा नेहा पर टोका टाकी करती रहती थी। नेहा कभी समीर से कहती तो समीर उसे ही समझा देता।
"अरे भाभी ने कई सालों से घर खुद संभाल रखा है। उन्हें तुमसे बेहतर पता है कि घर को किस तरह संभाला जाता है। इसलिए इतना ज्यादा ध्यान मत दिया करो"
नेहा को भी समीर की बात सही लगती इसलिए वो चुप रह जाती।
पर सुप्रिया की ये खासियत थी कि जब उसके मायके से कोई भी आता तो उनकी मेहमान नवाजी में कोई कमी नहीं छोड़ती। लेकिन जब नेहा के परिवार से कोई आता तो उन्हें अनदेखा ही करती। और ये बात नेहा को धीरे-धीरे अपने आप ही समझ में आ गई। खैर, उसने आरती से कहा, "जा पापा को मेरे कमरे में बुला ला। कहना दीदी बुला रही है।"
उसकी बात मानकर आरती बाहर से अपने पापा रविंद्र जी को अंदर बुला लायी।
"क्या हुआ बेटा?" पापा ने चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कुराहट लाते हुए कहा। पर उनकी जबरदस्ती की मुस्कुराहट को देख कर नेहा को समझते देर नहीं लगी कि क्या हुआ होगा। जी तो चाह रहा था कि खुद ही उठकर रसोई में चले जाए और पापा के लिए खाना लगा कर ले आए। लेकिन सवा महीने से पहले रसोई में भी उसका प्रवेश वर्जित था। जबकि उसकी नॉर्मल डिलीवरी थी।
नेहा अपने पापा से बोली, "पापा आप यहां कमरे में बैठ जाइए। मैं आपका खाना यही लगवा देती हूं।"
"अरे नहीं नहीं बेटा, क्यों परेशान हो रही है। जब सब लोग खा लेंगे, तब मैं और आरती भी खाना खा लेंगे। तू फिलहाल तो अभी मेरी नन्ही सी गुड़िया का ध्यान रख।" पापा नेहा को बहलाते हुए बोले।
"मैं कौन सा खाना परोस रही हूं पापा। मैं पिंकी को बोल देती हूं।" कहकर नेहा ने घर में काम करने वाली पिंकी को आवाज़ लगाई। उसकी आवाज सुनकर पिंकी दौड़ी-दौड़ी कमरे में आ गई।,
"क्या हुआ भाभी? कुछ चाहिए था।"
"पिंकी पापा और आरती का खाना यहां मेरे कमरे में ही लगा दे। पापा को दवाई भी लेनी होती है। और फिर मम्मी भी घर पर अकेली है। उनकी तबीयत भी खराब हो रही है, तो इन्हें देर भी हो रही है।"
"जी भाभी, अभी खाना लगाती हूँ।"
कहकर पिंकी फटाफट कमरे के बाहर निकल गई। नेहा ने आरती और पापा को वहीं पास रखी कुर्सी पर बिठा दिया। लेकिन पंद्रह बीस मिनट हो गए। पिंकी लौटकर ही नहीं आई।
आखिर नेहा ने पिंकी को दोबारा आवाज लगाई लेकिन पाँच मिनट ऊपर हो गए पिंकी कमरे में नहीं आई। आखिर नेहा उठकर कमरे के बाहर जाने लगी तो पापा बोले, "अरे बेटा क्यों परेशान हो रही है? वो किसी काम में बिजी होगी।"
"कोई बात नहीं पापा आप परेशान मत हो। मैं देख लूंगी" कहकर नेहा बाहर आई। रिश्तेदारों के नाम पर सिर्फ सुप्रिया के परिवार वाले बैठे थे। जिनसे वो हंसी ठिठोली कर रही थी। जबकि बाकी रिश्तेदार शायद जा चुके थे, इसलिए कोई नजर नहीं आया। इतने में पिंकी बाहर शरबत लेकर आई और उन लोगों को परोसने लगी। इतने में नेहा बोली, "पिंकी पापा और आरती के लिए फटाफट से खाना लगा दो। उन्हें देर हो रही है।"
अचानक नेहा की आवाज सुनकर सबका ध्यान नेहा की तरफ गया तो सुप्रिया बोली, "अरे नेहा, तुम बाहर क्यों निकल कर आ गई। पिंकी अभी खाना परोस तो रही थी।"
उसके पास सुनकर नेहा बोली, "भाभी पापा को देर हो रही है। उन्हें घर भी जाना है।"
  "अरे ऐसा कौन सा बिजनेस है तुम्हारे पापा का जो वो नहीं जायेंगे तो नुकसान हो जाएगा।"
सुप्रिया की बड़ी बहन ने नेहा से ठिठोली करते हुए कहा। उसकी बात सुनकर वहां बैठे सब लोग हंस दिए। पर नेहा ने ना तो जवाब दिया और ना ही उनकी तरफ ध्यान दिया। उसने दोबारा पिंकी को कहा, "पिंकी जल्दी से मेरे कमरे में खाना ले आओ।"
और पलट कर अपने कमरे में आ गई। कुछ ही देर में पिंकी फटाफट दो थालियाँ लगाकर ले आई। पापा और आरती तो खाना खाने लगे। लेकिन नेहा का ध्यान थाली पर गया। उसमें पूड़ी, दाल चावल, गोभी की सूखी सब्जी, और काजू कतली ही थे। जबकि आज घर में मटर पनीर, मिल्क केक, गुलाब जामुन भी बने थे। इतने में पिंकी गरमा गरम पूरी परोसने आई तो नेहा ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया और धीरे से उसके कान में कहा, "मटर पनीर, मिल्क केक और गुलाब जामुन क्यों नहीं लेकर आई?"
सुनकर पिंकी चुप हो गई और चेहरा नीचे कर लिया। नेहा को समझते देर नहीं लगी कि जरूर सुप्रिया ने उसे मना किया होगा। आखिर नेहा खुद उठी और वहां से सीधे रसोई में पहुंच गई।
वहां जाकर दो प्लेट्स में मिल्क केक और गुलाब जामुन रखे। वही दो कटोरी में मटर पनीर की सब्जी डालकर ट्रे में रखकर अपने कमरे की तरफ जाने लगी। जब ट्रे लेकर वो हॉल में से गुजरी तो सुप्रिया ने टोक दिया, "नेहा तुम्हें पता नहीं है क्या? सवा महीने से पहले रसोई में जाना वर्जित होता है। फिर तुम ये सब सामान क्यों लेकर जा रही हो?"
नेहा ने एक नजर उठाकर सुप्रिया की तरफ देखा और बिना कुछ जवाब दिये अपने कमरे में चली गई। अपने कमरे में जाकर मिठाई और पनीर की सब्जी अपने पापा और आरती को परोस दी। सुप्रिया को नेहा के इस बर्ताव से बड़ा गुस्सा आया। थोड़ी देर बाद जब नेहा के पापा और आरती खाना खाकर वहां से रवाना हुए, तो नेहा खुद उन्हें दरवाजे तक छोड़ने आई। उसे पता था कि उसके पापा और आरती के लिए कोई निकल कर नहीं आएगा।
उन्हें विदा कर जब वो अंदर आई तो अपने परिवार वालों के सामने ही सुप्रिया नेहा पर चिल्ला पड़ी, "क्या समझती हो तुम अपने आप को? घर की छोटी बहू हो, छोटी बहू बनकर ही रहो। हमारे सिर पर चढ़कर तांडव करने की जरूरत नहीं है। किस से पूछ कर तुमने रसोई में कदम रखा। पूरी रसोई गंदी कर दी। अरे एक दो चीज नहीं परोसी तो क्या गलत हो गया? उन्हें कौन सा इतना सब कुछ खाने की आदत है?"
"बस भाभी, बहुत बोल लिया आपने। जैसे मैं इस घर की बहू हूं, वैसे आप भी घर की बहू है। रिश्तेदार तो दोनों के एक समान हैं। जो सभी रिश्तेदारों को परोसा गया, वो मेरे पापा और बहन को क्यों नहीं परोसा गया। आखिर इतना भेदभाव क्यों?"
नेहा ने जब पलट कर सबके सामने जवाब दिया तो सुप्रिया तिलमिला गई। आखिर अपने मायके वालों के सामने अपनी बेइज्जती होते देखकर सुप्रिया बोली, "तुम अपने पापा की बराबरी मेरे परिवार वालों से कर रही हो। उन्होंने जब मुझे विदा किया था ना, खूब दहेज देकर विदा किया था। अरे तुम तो उनके नाखून की धूल के बराबर भी नहीं हो। अरे मेरे पापा ने तो मुझे राजकुमारी की तरह पाला है। तुम्हारे उस फटीचर...."
"भाभी अपनी जबान को यही रोक लो। बेहतर होगा आपके लिए। आपके पापा ने आपको राजकुमारी की तरह पाला है तो मेरे पापा ने भी मुझे राजकुमारी की तरह ही पाला है। हर पिता अपने बच्चों के लिए बेहतर ही करता है। जिस तरह आपके पापा का सम्मान है, उसी तरह मेरे पापा का भी सम्मान है।"
"अच्छा ज्यादा जबान चलने लगी है तुम्हारी। अरे वो तो मेरा देवर तुमसे शादी करने की जिद कर चुका था। वरना तुम्हारे जैसी को तो मैं अपने घर में भी नहीं फटकने देती।"
"बस करो सुप्रिया, जो जगह तुम्हारी इस घर में है, वही जगह इस घर में नेहा की भी है। बड़ी होकर तुम इस तरह की हरकत करोगी, उम्मीद नहीं थी तुमसे।" अचानक रजत ने अंदर आते हुए कहा।
रजत को देखते ही सुप्रिया अचानक चुप हो गई फिर बात को संभालते हुए बोली, "अरे आप ऑफिस से कब आए।"
"तभी आया था, जब तुम ये सब तमाशा कर रही थी। अंदाजा भी है तुम्हें कि तुम्हारी ये हरकतें इस घर के दो टुकड़े कर देगी।"
"आप भी मुझे ही कह रहे हो। नेहा इतने लोगों के सामने मेरी बेइज्जती कर रही है। वो नहीं दिख रहा आपको। सवा महीने से पहले रसोई में जाकर रसोई गंदी कर दी। क्या इतना भी बोलने का हक नहीं है मुझे।"
"हक है, बिल्कुल बोलने का हक है। लेकिन जहां सही है वहां गलत बोलने का हक तो किसी को भी नहीं है। अगर तुम ही इसके पापा को सम्मान देती और सब कुछ संभालती तो इसे उठकर रसोई में आने की जरूरत नहीं थी। आज तुम इसके पापा के साथ ऐसा कर रही हो। भगवान ना करें कल को तुम्हारी स्थिति ऐसी हो कि तुम्हें इसकी मदद की जरूरत पड़े। तब ये तुम्हारे पापा के साथ ऐसा बिहेवियर करें तो तुम्हें कैसा लगेगा। हैरानी तो इस बात की है कि तुम्हारे मायके वाली यहाँ खड़े हैं। लेकिन किसी ने भी इस बात का विरोध नहीं किया। सम्मान दोगी तो सम्मान मिलेगा। वरना आज जो कहानी इस घर में हुई हैं वो रोज होगी। अभी भी वक्त है संभल जाओ"
कहकर रजत अपने कमरे में चला गया। नेहा अपने कमरे में। सुप्रिया के मायके वाले भी धीरे-धीरे वहां से निकल गए।
पर सुप्रिया पर इसका कोई खास प्रभाव नहीं हुआ। सुप्रिया में बदलाव न देखकर दोनों भाइयों ने समझदारी दिखाते हुए अपने आप ही अपने घर को दो हिस्सों में बांट दिया। ताकि घर युद्ध का मैदान ना बने। और रिश्तो की गरिमा भी रह जाए।

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