top of page

बदलाव

पूनम भटनागर

सावित्री और रूक्मिणी बैठीं हंसी ठठ्ठा कर रही थीं कि सावित्री एकाएक विषय बदलती हुई बोली, तो रूक्मिणी कब बना रही हो साक्षी को हमारे घर की बहू।
क.....या, रूक्मिणी सावित्री के इस प्रस्ताव पर अचकचा कर बोली। अरे भूल गयी क्या, उस दिन ही तो तय किया था कि सुदेश व साक्षी को विवाह बंधन में बांध कर हम दोस्ती को नाम दे देंगे।
दोनों बच्चे भी राजी हैं इस फैसले से। मां, किस फैसले की बात कर रही हो। साक्षी ‌और सुदेश ने घर में प्रवेश करते हुए कहा। अरे वही, तुम दोनों के विवाह बंधन की बात। अरे मां, मेरी अभी तो नौकरी लगी है, थोड़ा खुश तो हो लेने दो, कुछ समय बाद कर लेंगे शादी। अभी कौन सी उम्र निकली जा रही है।
न---न भी न, मैं तो दोनों लक्ष्मियों के आने की राह देख रही हूं, सावित्री ने अधीर होते हुए कहा। दोनों लक्ष्मी, रुक्मिणी व दोनों बच्चों ने हैरानी जताते हुए कहा। तो सावित्री ने खुलासा करते हुए कहा्, एक तो लक्ष्मी साक्षी बन कर आ रही है दूजे चांदी सोने के सिक्के से भरा थाल फेरों से पहले मुझे चाहिए। अब एक, एक एक तो बेटा है मेरा, वो भी सुप्रीटेंडेंट, इतना तो बनता है ‌।
रुक्मणी को जाहिर है ये बात नहीं सुहाई। वो उठते हुए बोली, देखते ‌है। घर आकर वह सोचने लगी कि सावित्री का इस तरह खुल्लम खुल्ला मांग करना अच्छा नहीं लगा हालांकि रूक्मिणी के लिए यह कोई ‌बडी बात नहीं थी, रूक्मिणी के पिता गांव के पटवारी थे। कई खेत भी उनके नाम थे। पर इस तरह मूंह खोल कर मांगना ठीक नहीं। सावित्री और रूक्मिणी दोनों का घर एक ही मोहल्ले में था। दोनों के बच्चे साथ खेल कर बड़े हुए।
साक्षी ने भी आई पी एस की परिक्षा पास कर शहर में नौकरी लगने से वह वहां चली गई। पर दोनों बच्चों की दोस्ती प्यार में बदल कर परवान चढ़ रही थी।
सावित्री की जिद अपनी जगह थी। दोनों बच्चों ने एक प्लान ‌बनाया कि मां के सर से किस तरह ये दहेज का भूत उतर सके। साक्षी के पड़ोस में शादी थी। उसने पड़ोसियों से कहा कि दोनों पक्षों को एक नाटक खेलना है। साक्षी की मां रुक्मिणी व सावित्री दोनों को उसने बुला लिया। सुदेश व उसके पापा ‌भी आ गये।
सभी लोग शादी में शामिल होने गए। अभी वो शादी की रस्में देख ही ‌रहे थे कि पुलिस आकर वर पक्ष के लोगों को व वर को हथकड़ी डाल कर लें गयी। ये लोग साक्षी के साथ घर आ गए। क्यों कि खाना तो ये लोग खाकर आए नहीं थे अतः साक्षी ने पहले से ही बनाया पनीर व कोफ्ते की सब्जी निकाली व रोटी बनाने का उपक्रम करने लगी। सुदेश भी वही किचन में आ गया।
सावित्री, रुक्मणी व सुदेश के पिता सब लोग पड़ोस की शादी की ही बात कर रहे थे। रसोई घर में उनकी बातें साफ सुनाई दे रही थी। एकाएक सुदेश के पिता, सावित्री से बोले अब बताओ, तुम्हारा क्या कहना है, शादी में मिलने वाले दहेज के बारे में। तुम्हारी तो होने वाली बहू ही पुलिस में है।
सावित्री कानों को हाथ लगाती बोली, तौबा करो जी, मैं बहुत ग़लत सोच ‌रही थी, असली दहेज तो साक्षी ही है, जो घर की लक्ष्मी बन कर आएगी।‌ सब लोग ठहाका लगा कर हंस पड़े। अंदर रसोई घर में भी सुदेश व साक्षी इस बदलाव की हवा को महसूस कर मुस्कुरा उठे। और इस तरह एक रिश्ता दहेज की बलि चढ़ने से बच गया।

******

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page