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बरखा ऋतु

प्रदीप श्रीवास्तव

बरसे बरखा सुहानी रे....
आई ऋतुओं की रानी रे.....
सावन के महीने में,
झूलों की कहानी रे......
बरसे बरखा............
जब नील गगंन में ,
काले काले मेघा छाये रे ।
मोती बनकर ये बूँदे ,
निर्झर धरती पे बरसाये ।
मिलकर गाये गीत सुहाने रे ।।
बरसे बरखा...........
निर्मल जल गिरता पानी,
मोती चॉदी सा चमके पानी ।
मस्त अल्हड़ चले पवन पुरवाई ,
पेड़ो शाख़ो पे जवानी छाई ।
सब दिलों पे मस्ती छाई रे ।।
बरसे बरखा..............
ताल पोखर कुंआ तलैया रे ,
खेतों में होवन लगी बुआई रे ।
खेतों मेडों पे बैठी नवतरुणाई ,
गीत सुहावन गाये रे ।
मोर मोरनी संग नाचे रे ।।
बरसे बरखा...............
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