नमिता गुप्ता “मनसी”
जाते हुए बरस से बातें,
जो कभी कही नहीं गईं
सुअवसर के इंतज़ार में ठिठकी रहीं
कहने और न कहने के ठीक बीच के अंतराल पर,
अंततः यह गईं अनकही सी!!
कविताएं, जो अधूरी रहीं लेती रहीं उबासियां
रफ ड्राफ्ट में पड़े पड़े!!
किस्से, जो गढ़े नहीं जा सके अस्वीकृत ही रहे
कभी सत्यता की कसौटी पर
तो कभी भावनाओं की तर्ज़ पर!!
होनी, जो होती रही अपने पूरे अनहोनेपन के साथ
और उस ‘होने’ को
झुठलाते फिरते रहे हम अपनी तमाम उम्र!!
प्रेम, जिसे सबसे ज्यादा तलाशा गया, नहीं मिला
जब भी मिला वक्त के बाद मिला,
हार गया इस बरस भी!!
रिक्तियों को भर देता है और अधिक खालीपन से
ये बरस भी जाते-जाते छूट रहे हैं,
हम भी और अधिक, इस जाते हुए बरस से!!
******
Comments