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बराबरी

अंजना ठाकुर

ये क्या कर रहे हो आप मुझे जूते पड़वाओगे क्या मांजी से? अगर उन्होंने काम करते देख लिया आपको तो पूरा घर सर पर उठा लेंगी। अनुजा जल्दी से सूरज को रसोई से बाहर निकालती हुई बोली।
सूरज बोला इसमें डरने वाली क्या बात है। जब तुम बराबरी से नौकरी कर रही हो, घर खर्च में हाथ बंटाती हो, तो मैं घर के काम में क्यों नही मदद कर सकता?
तुम रहने दो कुछ दिन की बात है मांजी को पता चला तो शर्मिंदा कर देंगी।
अनुजा और सूरज ससुराल से अलग रहते हैं। सूरज के घर में लड़कों से काम नही कराया जाता। सब काम घर की औरते ही करती हैं। अनुजा और सूरज दोनों ही नौकरी करते हैं।
अनुजा नौकरी के कारण घर के काम निपटाने में बहुत परेशान हो जाती थी। तब सूरज ने धीरे-धीरे काम सीखा और अनुजा की मदद करने लगा। जिस से दोनों एक दूसरे के साथ वक्त भी बिताते और अनुजा को आराम भी मिल जाता, दोनों अपनी जिंदगी से खुश हैं।
अनुजा, सूरज को रसोई से निकाल ही रही थी कि सामने से मांजी आ गई, जो रात को ही आईं थी। उन्होंने अनुजा की बातें सुन ली थी।
बोली सही कह रहा है सूरज। जब तुम नौकरी कर सकती हो तो सूरज काम कर सकता है। मुझे कोई दिक्कत नही बल्कि खुशी है कि मेरा बेटा इस बात को समझ रहा है। नहीं तो मेरी सास और इसके पापा ने तो कभी जरूरत समझी ही नहीं। उनका सोचना है कि ये काम औरतों के ही हैं। तो मुझे भी वही सब करना पड़ता है।
अनुजा, मांजी के गले लग गई। सूरज भी गले लगते हुए बोला इसमें भी बराबरी होगी, सब हंसने लगे।

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