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बहू की बंदिशे

संगीता शर्मा

आशी आज बहुत गुस्से में थी, और होती भी क्यों ना? उसे लगता था, मोहल्ले की सभी बहुओं में सबसे ज्यादा दुखी वही है।   शाम को जब अभिषेक आशी के पति घर आए तो आशि का सारा गुस्सा उन पर निकला।
   आशी ने कहा सारे घर का काम मुझे ही करना पड़ता हैl अब सामने वाले पड़ोसी शर्मा अंकल की बहू को देखो वह तो कभी नहीं निकलती बाहर उसे तो कभी भी बाहर जाते हुए भी नहीं देखा हैl और एक मैं जो दिन भर घर के कामों से स्कूटी लेकर बाजारों में घूमती रहती हूंl
और आकर फिर घर का काम करो खाना बनाओ और तो और बच्चों की सारी जिम्मेदारी भी मेरे ऊपर हैl आपसे तो इतना भी नहीं होता कि बच्चों की स्कूल की डायरी भी चेक कर ले।
वह भी मुझे ही करनी है, आशी गुस्से में सारी बातें अभिषेक को बोले जा रही थीl और अभिषेक चुपचाप खड़े हुए चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान लिए उसे हाव भाव दे रहे थेl अभिषेक के मजाक के हाव भाव देखकर आशी और ज्यादा नाराज हो गई।
और चिल्लाते हुए बोली, सही है आपका यहां में जल रही हूं और आप मेरे मजे ले कर हंस रहे होl तब अभिषेक ने हंसते हुए कहा यार आशी अब तुम्हारी इन बेकार की बातों पर हंसी नहीं तो क्या सीरियस हूं? तुम अपनी तुलना शर्मा अंकल की बहू से कर रही हो?
तुम्हें पता है शर्मा अंकल और आंटी दोनों अपनी बहू को घर से बाहर खड़ा तो होने नहीं देतेl वह बाहर कैसे निकलेगी? तुम तो शुक्र करो तुम्हारे ऊपर ऐसी कोई बंदिश नहीं है। तुम चाहे जहां जाओ और तुम्हारा मन करे वह पहनो फिर भी तुम संतुष्ट नहीं हो।
तब आशी ने कहा यह कोई आजादी है मेरी..l सारे दिन लगे रहो बाजारों मेंl मैं भी चाहती हूं कि कभी-कभी मुझे किसी चीज के लिए बाजार जाने का मन ना करें तो वह चीज तुम मुझे लाकर घर पर दे दो। पर तुमसे तो उम्मीद करना ही बेकार है। तभी तो मेरा एक पैर घर में होता है और एक पैर बाजार में।
तब अभिषेक ने कैसे जैसे आशी को मनाया और फिर रात का खाना खाकर सब सो गए। अगले दिन आशी किसी काम से बाजार के लिए निकली ही थी, तभी उसे आवाज आई..l दीदी इधर देखो...! आशी आवाज सुनकर भी अपना वहम समझकर आगे बढ़ने लगी। फिर दोबारा उसे वही आवाज आई तब उसने देखा शर्मा अंकल की बहू अपने कमरे की खिड़की से उसे आवाज दे रही थी।
जब आशी ने उसकी तरफ देखा तो उसने इशारा करते हुए अपने पास बुलाया और कहा भाभी क्या आप मुझे लाल रंग की नेल पॉलिश ला दोगे? मैंने अपने पति से कहा था पर उनके पास समय की कमी होने की वजह से उन्होंने मुझे टाल दिया था। कहा कभी और बाद में ला दूंगा।
तब आशी ने कहा अरे तो ऐसा करो तुम चलो ना मेरे साथ। तुम बाजार भी घूम आओगी और तुम्हें जो भी सामान चाहिए वह ले लेना और साथ में अपन दोनों गोल गप्पे भी खाएंगे..!!! इतना सुनते ही शर्मा अंकल की बहू की आंखों में आंसू आ गए और बोली दीदी मेरी किस्मत आपकी जैसी नहीं है।
मैं अपनी पसंद से कुछ भी नहीं खरीद सकती हूं। जो भी कुछ घर वाले अपनी पसंद से लाकर देते हैं वही पहन लेती हूं l मैं बहू हूं ना तो यह लोग मुझे कहते हैं बहू तुम चारदीवारी में ही रहो। तभी हमारे घर की शोभा है। आज के जमाने में भी मेरी सांस मुझे घर से बाहर जाने नहीं देती है, और ना ही पड़ोस में किसी से बात करने देती है।
तभी पीछे से आवाज आई बहू.....!!! और वह अपनी अधूरी बातों को बिना पूरा करे ही अंदर चली गई। और उसके अंदर जाने के बाद, आशी यह सोचने पर मजबूर हो गई कि किस्मत किसकी खराब निकली? मेरी कि मुझे अपने घर और बाहर दोनों का काम संभालना पड़ता है। या शर्मा अंकल की बहू की जो अपने घर के बाहर भी खड़ी नहीं हो सकती है।
आशी सोचने लगी कि मैं तो हमेशा यही सोचती थी कि, शर्मा अंकल की बहू के तो ऐश है जो, उसे घर पर बैठे बिठाए हर सामान मिल जाता है। पर आज वह अपनी किस्मत को सराह रही थी, क्योंकि चाहे काम के बहाने ही सही वह घर से बाहर निकल तो सकती है।
जिससे चाहे उससे बात कर सकती है, अपनी पसंद का कुछ भी खरीद सकती है। अगर मुझे ऐसे चारदीवारी में कैद कर दिया जाता तो आज वह भी ऐसे ही तड़पती जैसे शर्मा अंकल की बहू आज झटपटा रही है। आज आशी को समझ आ गया था कि जैसा हमें दूर से दिखाई देता है सच्चाई में अक्सर ऐसा होता नहीं है।

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