सविता पाटील
बरसी तो थी बारिश,
बूंदों ने कोना कोना भिगो दिया,
भर गई नदी,
भरा सरोवर,
सागर भी तो भर गया!
फिर क्यों वो प्यासा…
शिकायत में खड़ा था,
देखा तो...
उल्टा रखा घड़ा था,
बह गई धाराएं
किसी के लिए निरर्थक रहा सावन,
कोई अपनी प्यास बुझा हो गया पावन!
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