डॉ. जहान सिंह “जहान”
यूं तो चलन से बाहर हूं,
पर बीते वक्त की बहार हूं,
यह सोचना गलत है कि मैं बेकार हूं
आज भी पहली कतार में बैठा हुआ,
महफिलों का श्रृंगार हूं,
मैं बूढ़ा नहीं एक अनुभव साकार हूं,
आज के लोगों के सिक्के सा कबाड़ नहीं,
मैं सोना-चांदी, गिन्नी मोहरों का भंडार हूं,
यूं तो चलन से बाहर हूं,
बचपन में उंगली पकड़कर चले थे तुम,
थामे रहो यह हाथ आज भी,
तिनका ही सही पर डूबने वालों का सहारा हूं,
यूं तो चलन से बाहर हूं,
पर बीते वक्त की बहार हूं।
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