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बेइज्जती

रमा कांत शुक्ल

धनबाद के पुराने बाजार के पास मैं एक विवाह में गया हुआ था। मैं बाहर बैठा था। डीजे बज रहा था और अंदर पार्टी चल रहा थी। अचानक मुझे कॉलेज का एक दोस्त अमन मिल गया। वो भी शादी मे आया हुआ था। दोनों मिले बहुत सारी बातें हुई। फिर दोनों खाने के लिये अंदर गये।
मेरे दोस्त अमन ने स्टाल पर लगे सारे भोजन को प्लेट में लेकर जैसे ही पहला कौर खाया, उसने बुरा सा मुंह बनाकर कहा... छी छी, थू थू, ये खाना है या गोबर।
पता नहीं कैसे इसका स्वाद है। सब्जी जैसे जल गई है। नमक भी समझ में नहीं आ रहा है। कचौड़ी तो जैसे पत्थर, दांत से फूट ही नहीं रही है। यह भी कोई भोजन है। ऐसे भोजन तो मेरा कुत्ता भी ना खाए।
इतना कह कर उसने भोजन समेत प्लेट डस्टबिन में फेंक दिया। मैं बगल में खड़ा खाते हुए सब कुछ सुन और देख रहा था। मैंने उससे पूछा, “आखिर हुआ क्या? क्यों भोजन फेंक दिए? क्या कोई भोजन का इस तरह अपमान करता है?”
अमन ने उच्च स्वर में कहा, “जब स्वादिष्ट भोजन खिलाने की औकात नहीं थी, तो दावत क्यों दी। अब देखो भोजन इतना घटिया बना है कि देखते ही उल्टी आ जाए। यह भी कोई भोजन है। पता नहीं कैसे लोग खा रहे हैं। कभी अच्छा भोजन खाए हो तो खिलाये।”
मैंने समझाते हुए कहा, “तुम जिस दिन बिटिया की शादी करोगी, उस दिन आटा चावल का भाव पता चलेगा। अरे इतना तो सोचना चाहिए था कि एक बाप जीवन भर कमाता है और कर्ज भी लेता है, बस इसी एक दिन सबको खिलाने के लिए। वह भोजन पर अकेले लाखों रुपए खर्च कर देता है।
इतना खर्च होने के बावजूद भी तुम्हें यह भोजन बेस्वाद लग रहा है। यहां जितने लोग भी खा रहे हैं, किसी ने भी कुछ नहीं कहा और तुमने भोजन का अपमान कर दिया। साथ ही साथ एक पिता की भी बेइज्जती की। जिस दिन यह सब तुम्हें करना पड़ेगा, उस दिन तुम्हें पता चलेगा कि हजारों लोगों की भीड़ को भोजन कैसे कराया जाता है।
यही भोजन यदि पैसे देकर किसी होटल में खाते होते, तो उंगली तक चाट लिए होते। और यहां नखरे कर रहे हो, क्योंकि यहां पैसे तो देने हैं नहीं।
अमन मेरी बातों को गंभीरता से सिर झुका कर सुन रहा था। अगल-बगल के लोग भी मेरी बातों को गौर से सुन रहे थे। अमन केवल इतना ही बोला, “सॉरी पंडित जी।”
फिर दूसरी प्लेट लेकर भोजन करने लगा। शायद अब उसे स्वाद आने लगा था।

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