प्रेम नारायण
बहुत गंवाया मैंने तेरी बेखुदी से
कभी शोहरत मिली तो कभी बदनामी मिली
सिर्फ तेरी नाकामी से
हमने न कभी चाहा था तेरी दुनियां से जुदा होना
मगर क्या करूं आप तो खफा थे
मेरी नादानी से
हाल अब बद से बदतर हुआ जा रहा है
तुझसे दिल लगाने से नुकसान ही हुआ
मेरी नादानी से
गैरों से धोखा खाए तो हम संभल गए मगर
दोस्ती कर दुश्मनी क्यूं ये न समझ सके
अपनी खामी से
चाहें तो ठुकरा दें मर्ज़ी है आपकी मगर
कब तक ज़ुल्म जमा होगा अब हम न करेंगे
शिकवा तुम्हीं से
बगावत का इल्म हममें नहीं क्या पता था
वो दौर भी आएगा जब सामना होगा
इक दूजे की नाकामी से
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