अनजान
वह बच्चा सड़क पर दौड़ रहा था, पीछे से ट्रक आता देख मनीषा भागी और बच्चे को बचा लिया।
एक ठेले वाले ने मनीषा की हिम्मत की दाद दी और कहा," मैडम, आपको मानना पड़ेगा। वैसे यह ट्रक वाला दृश्य देखकर किसी भी माँ में हिम्मत आ जायेगी।" तभी उषा आकर मनीषा पर चिल्लाने लगी," कहाँ ले जा रही हो मेरे मोनू को, कल ही मैंने पढ़ा था कि शहर में बच्चे उठाने वाला गैंग सक्रिय हैं, तुम उसी गैंग की लगती हो, अभी पुलिस को बुलाती हूँ।"
ठेले वाले ने उषा को रोका, बताया कि मनीषा ने कैसे अपनी परवाह न कर बच्चे को बचाया। फिर मनीषा से बोला,"जिस तरह आपने दौड़कर बच्चे को उठाया, छाती से चिपकाया मुझे लगा कि आप उसकी माँ है लेकिन माँ तो यह बहन निकली।" मनीषा ने कहा, "मैं इस बच्चे की माँ न सही परंतु माँ तो हूँ, हूँ नहीं थी। ऐसे ही मेरा बच्चा भी सड़क पर खेल रहा था, सामने से तेज गति से बाइक आ रही थी, मैं अपने बच्चे को बचाने भागी परंतु बदकिस्मती से गिर पड़ी। पास में दो महिलाएँ भी खड़ी थी, दोनों एक दूसरे को देख रही थी जैसे कह रही हो कि तुम जाओ बचाने, उस दिन उन दोनों में से किसी ने मेरे जैसी हिम्मत दिखा दी होती तो आज मेरा..।" मनीषा की ममता हाथों से चेहरा छिपाकर रो उठी।
मनीषा के आँसू उषा की आँखों में आ गये। वह मनीषा से बोली, "बहन, माँ कभी थी' नहीं होती। मोनू को अपना बेटा ही समझिये, यह लीजिये मेरा कार्ड, मोनू से मिलने का जब मन करे आ जाइयेगा।"
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