गीतांजलि गुप्ता
पलाश बहुत खुश था। कई महीनों से नौकरी ढूंढ रहा था। एक साथ दो कम्पनियों से आये नियुक्ति पत्र ले माँ और पापा के पास आया, उसके चेहरे की खुशी देख माँ एकदम समझ गई कि इसे नौकरी मिल गई है। अपने इकलौते बेटे को हर परिस्थिति से मुकाबला करके अजय जी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई थी परंतु बहुत कोशिशों के बाद भी पलाश को नौकरी नहीं मिल रही थी।
पापा को दोनों पत्र दिखाये और बताया कि एक नौकरी तो बैंगलौर में मिली है और एक अमेरिका में।
माँ पलाश को अपने से दूर भेजने की बात से परेशान हो गई। न चाहते हुए भी आँखों से आँसू गिर ही पड़े, नौकरी मिली है तो बेटे को बाहर भेजना ही पड़ेगा अमेरिका हो या बैंगलोर। खुशी और उदास माँ ने जल्दी से हलवा बना भगवान का भोग लगाया।
पापा ने पूछा, "क्या सोचा बेटा कहाँ की नौकरी जॉइन करोगे।" मैं तो समझता हूँ अमेरिका की नौकरी में बहुत तरक्की और पैसा मिलेगा तुम वो ही जॉइन कर लो। वैसे भी अपने देश में तो कुछ रखा ही नहीं है।" पापा ने अपनी बात कह दी।
"अपने देश में ही बहुत कुछ रखा है पापा, यहाँ मेरी माँ है, आप हो। पैसे के पीछे भागने से क्या मिलेगा पापा, मुझे पैसा नहीं आप लोगों का साथ चाहिए। परसों मुझे बैंगलोर के लियें निकलना है।" पलाश ने जबाब दिया।
माँ और पापा ने एक साथ पलाश को गले लगा लिया। सच में उस में उन्हें अपना श्रवण कुमार नज़र आया।
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