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बैंड बाजे

निरंजन धुलेकर

कोर्ट में हो गया फ़ैसला आज। दोनों बाहर आ गए, एक दूसरे के प्रति निर्विकार पर अपनी-अपनी जीत के विजयी भाव चेहरे पर लिए सड़क की तरफ बढ़ लिए।
सड़क से बैंड बाजे की आवाज़ आ रही थी शायद कोई बारात जा रही थी, मजबूरन दोनों को रुकना पड़ा। कैसा तो भी होने लगा दोनों को! सालो पहले की याद आ गयी बैंड, बाजा, नांच, बारात, फेरे, मंत्र, विधि विधान और सात वचन ...!
सड़क पार तो दोनों को करनी ही थी, अब ये बारात गुज़रते देखना दोनों की बन चुकी थी एक मजबूरी। निगाहें मिली जैसे कुछ कहना चाहते थे।
अचानक, बैंड की आवाज़ों में से उठने लगीं दुसरीं आवाज़ें, तेज झगड़े चीखने चिल्लाने की 'आय हेट यू लीव मी! यू आर इम्पॉसिबल, लेटज़ गेट आउट ऑफ़ धिस मेस! आय डोंट वॉन्ट टु सी योर फेस!' असह्य हो गया बारात देखना! दोनों ने गर्दनें झटकीं और तेज़ी से सड़क पार कर गए।
अब न कोई पीछे से आवाज़ ही देगा और न ही पूछेगा कि कहाँ जा रहे हो और कब लौटोगे? दोनों सड़क पर अब आज़ाद थे। मंज़िल भी एक न थी सो अलग दिशाओं में मुड़ गए बिना पीछे देखे उस अनजान भीड़ का हिस्सा बन खो गए।
पर इन बारातो की ये आवाज़ें तो ज़िन्दगी भर ही सुनाई देने वाली थीं, क्या करेंगे? कान अनसुना कर भूल सकते थे पर यादें?

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