top of page

भीगी रातें

ग़ज़ल

भीगी रातें

शालिनी श्रीवास्तव 'शानु'


छोटी लंबी तारों वाली,
ख़्वाबों वाली रातें,
ज़ाया कर दी मैंने तुझ पर
जाने कितनी रातें।

तिरे हिज्र में काटी मैंने
वस्ल की सारी रातें
बीत रही अब यूँ ही,
अध सोई, अध जागी रातें।

रात अंधेरी, घुप, तन्‍्हाई
और इक ख़ाली पन बस,
तू क्‍या जाने कैसे कटती,
मुझसे ऐसी रातें।

शाने पर सिर रखके तेरे
एक सुकूँ मिलता है,
ख़्वाब सरीखी लगती हैं
आगोश में तेरी रातें।

मखमल के बिस्तर में
सोने वाला क्‍या ही जाने,
सीली लकड़ी, बुझता चूल्हा,
पेट जलाती रातें।

हाथ पकड़ बस इक दूजे का
मीलों चलते जाते

गीली-गीली सड़कों पर

वो भीगी-भीगी रातें।


0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page