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महंगाई की मार

मुदित अग्रवाल

 

महंगाई की मार
जनता हो रही है बरवाद इसको कौन बचाएगा
महंगाई की बढ़ रही मार जीवन कैसे कट पायेगा।
 
महंगाई तो बढ़ती जा रही बढ़ते टैक्स अपार
महंगाई के कारण घर घर बढ़ रही है तकरार
इतने कम पैसों में अपना घर कैसे चल पाएगा
जनता हो रही है बरवाद इसको कौन बचाएगा।
 
रात दिना जो करै मजूरी मेहनत करै डटकर पूरी
सूखे नहीं पसीना तन फिर भी रोटी की मुख दूरी
फिर भी लेना पड़े कर्जा उसको कौन चुकाएगा
जनता हो रही है बरवाद इसको कौन बचाएगा।
 
माँबहिनें मेहनत करतीं महंगाई से निस दिन डरतीं
पुत्रपिता सब करें कमाई फिर भी पूर्ति परै न भाई
बणिक किसां की नैया डूबे इसको कौन बचाएगा
जनता हो रही है बरबाद इसको कौन बचाएगा।
 
मंत्री से सन्तरी तक देखो रिश्वत का व्यापार
कोर्ट कचहरी दफ्तर में भी फैला भ्रष्टाचार
फ़ैल गया है यह शोषण अब पोषण कौन कराएगा
जनता हो रही है बरवाद इसको कौन बचाएगा।
 
छोटे छोटे बच्चे काम करें उम्र है पढ़ने लिखने की
सबसे पहले पड़ी जरुरत उनके तन को ढकने की
भूखे नंगे गरीब तनों को कपड़े कौन पहनाएगा।
जनता हो रही है बरबाद इसको कौन बचाएगा।

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