top of page

महापर्व छठ

मंजू यादव 'किरण'

मैं अपनी बेटी के घर गयी हुयी थी, वहां मेरी बेटी के बेटे (नाती) का जन्मदिन था। एक दिन मेरी बेटी की सास मुझसे कहने लगीं, "बहनजी, आपका पोता कितने साल का हो गया है।"
मैंने कहा, "तीन साल का हो गया है, चौथे में चल रहा है।"
वो बोलीं, फिर तो ठीक है मैंने छठ मैया से उसके होने की मन्नत मांगी थी कि मेरी बहू की भाभी के अगर लड़का होगा तो मैं छठ मैया उसकी कोसी भरूंगी। मैंने अपनी बेटी की सास की बात सुन तो ली, पर इतना ध्यान नहीं दिया क्योंकि हमारे इधर छठ का त्योहार नहीं होता है। बात आई-गई हो गई लेकिन जब मैं और मेरे साहब बेटी के घर से चलने लगे तो मेरे दामाद जी भी छठ पर अपने यहां आने के लिए कहने लगे।
मेरे दामाद जी मुझसे कहने लगे, "आप छठ पर हमारे घर जरूर आईयेगा, हमारी अम्मा प्रथम (मेरा पोता) की कोसी भरेंगी। उन्होंने शायद इसके होने की मन्नत मांगी है।"
मैंने उस समय तो अपने दामाद जी से कुछ नहीं कहा, हम दोनों अपने घर दिल्ली आ गये।
जब छठ का अगला पर्व आया तो मेरे साहब बोले, "तुम लोग चित्रांगदा (मेरी बेटी) के घर पर हो आओ, उसकी सास ने प्रथम के होने पर छठ मैया की कोसी भरने को बोला है।"
वैसे हम लोगों के यहां छठ का त्योहार नहीं होता है लेकिन छठ के त्योहार आने पर हम लोग चित्रांगदा के घर जाने की तैयारी करने लगे। अब जब मेरी बेटी की सास ने हमारे पोते की होने की मनौती मांगी थी तो जाना भी जरूरी था।
जब छठ का त्योहार आया तो मैं, प्रथम और हमारी बहू (पायल) तीनों को लेकर मैं अपनी बेटी के घर गये। खासतौर से बेटी की सास के लिए एक सुंदर सी साड़ी और अंगूठी लेकर गए, वहां हम लोग खरने वाले दिन पहुंचे थे।
अगले दिन से उनका छठ का व्रत था, व्रत तो हमने भी रखा था, पर फलाहार रखा था। बेटी की सास ने तो निर्जल व्रत रखा था, उनके घर के मंदिर को छठ पर बहुत सुंदर सजाया था, छठ की पूजा भी देखने लायक थी, खासतौर से डिजाइनदार ठेकुए तो मैंने पहली बार देखे थे।
वहां गन्ने के समूह से एक छत्र बनाया गया था उसी के ऊपर लाल कपड़े से उसको ढका गया था, वहीं बेटी की सास ने हमारी बहू की कोसी भरी, ये सब हमने पहली बार देखा था। शाम को हम लोग घाट भी गए थे, वहां भी जाकर पूजा-पाठ करी डूबते सूर्य को अर्ध्य दिया। अगले दिन उगते सूर्य को घाट पर ही अर्ध्य देकर फिर कुछ खाया-पिया। मुझे मेरी बेटी के सास के हाथ के बने ठेकुए बहुत पसंद आये थे, ये हमने पहली बार खाये थे। इस तरह से हम लोगों ने छठ का त्योहार और कोसी कैसे भरते हैं देखा।
सबसे बड़ी बात तो हमें ये लगी कि बेटी की सास ने हमारे पोते के लिए मनौती मांगी थी और उसके नाम की कोसी भरी वर्ना आजकल तो इंसान अपनों-अपनों के लिए मनौती मांगता है। उन्होंने हमारे लिए मनौती मांगी, ईश्वर ऐसा दिल सबका बना दे। हालांकि हम लोगों के यहां छठ का त्योहार नहीं होता था, फिर भी मैंने पांच साल तक आगे भी छठ का व्रत अपने घर भी आकर हर साल रखा। लेकिन छठ मैया के गाने मैं आज तक बड़े मनोयोग से सुनती हूं, छठ के गाने मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।
छठ पूजा भगवान सूर्य और छठ मैया को समर्पित है, छठ पूजा में चार दिनों के दौरान महिलाएं अपनी संतान की सलामती और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं।

*****

2 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page