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माँ का कटोरदान

डॉ कृष्णा कांत श्रीवास्तव

जब हम छोटे थे तब मम्मी रोटियां एक स्टील के कटोरदान में रखा करती थी।
रोटी रखने से पहले कटोरदान में एक कपड़ा बिछाती वो कपड़ा भी उनकी पुरानी सूती साड़ी से फाड़ा हुआ होता था। वो कपड़ा गर्म रोटियों की भाप से गिरने वाले पानी को सोख लेता था, जैसे मम्मी की साड़ी का पल्लू सोख लेता था हमारे माथे पे आया पसीना। कभी धूप में छाँव बन जाता, कभी ठण्ड में कानों को गर्माहट दे जाता।
कभी कपड़ा न होता तो अख़बार भी बिछा लेती थी मम्मी।
लेकिन कुछ बिछातीं ज़रूर थी। समय बीतता गया और हम बड़े हुए।
एक बार दीपावली पर हम मम्मी के साथ बाजार गए।
तो बर्तनों की दूकान पर देखा केसरोल, चमचमाते लाल रंग, का बाहर से प्लास्टिक और अंदर से स्टील का था। दुकानदार ने कहा ये लेटेस्ट है इसमें रोटियां गर्म रहती है।
हम तो मम्मी के पीछे ही पड़ गए अब तो इसी में रोटियां रक्खी जाएँगी, मम्मी की कहाँ चलती थी हमारी ज़िद के आगे। अब रोटियाँ कैसेरोल में रक्खी जाने लगी।
कटोरदान में अब पापड़ रखने लगी थी मम्मी।
अगले महीने, मम्मी की एक सहेली ने, पापड़ मंगवा के दिए पर, वो तो बहुत बड़े थे, तो कटोरदान में फिट ही नहीं हो पाये इसलिए उन्हें एक दूसरे बड़े डब्बे में रखा गया।
और अब कटोरदान में मम्मी ने परथन रख लिया। जैसे-जैसे समय बीतता गया कटोरदान की भूमिका भी बदलती गई पर वो मायूस न हुआ जैसा था वैसा ही रहा। बस ढलता गया नयी भूमिकाओं में।
कुछ और समय बीता....
मेरी शादी हो गयी और मैं एक नए शहर में आ गयी। मम्मी ने मुझे बहुत सुन्दर कीमती और नयी चीज़ें दी अपनी गृहस्ती को सजाने के लिए। पर मुझे हमेशा कुछ कमी लगती।
एक बार जब गर्मी की छुटियों में मम्मी से मिलने गई तो मम्मी ने मुझे एक कैसेरोल का सेट दिया।
मैने कहा मुझे ये नहीं वो कटोरदान चाहिए।
मम्मी हंस दी बोली, “उसका क्या करेगी? ये ले जा लेटेस्ट है।”
मैंने कहा हाँ ठीक है पर वो भी।
मम्मी मुस्कुरा दी और परथन निकालकर कटोरदान धोने लगी, उसे अपनी साड़ी के पल्लू से सुखाया और उसमें पापड़ का एक पैकेट रख कर मेरे बैग में में रख दिए।
अब खुश मम्मी बोली, मैने कहा हाँ।
मै उस कटोरदान को बहुत काम में लेती हूं। सच कहूँ तो अकेलापन कुछ कम हुआ।
कभी बेसन के लाडू भर के रखती हूं, कभी मठरी कभी उसमें ढोकला बनाती हूँ। कभी सूजी का हलवा जमाती हूँ। कभी कभी पापड़ भी रखती हूँI नित नयी भूमिका मैं ढल जाता है, मम्मी का ये कटोरदान।
यहाँ आने के बाद मुझे मम्मी की बहुत याद आती थी, पर मैं कहती नहीं थी के मम्मी को दुःख होगा। कभी-कभी सोचती हूँ क्या इस कटोरदान को भी मम्मी की याद आती होगी?
ये भी तो मेरी तरह मम्मी के हाथों के स्पर्श को तरसता होगा। आखिर इसने भी तो अपनी लगभग आधी ज़िन्दगी उनके साथ बिताई है।
बस हम दोनों ऐसे ही अक्सर मम्मी को याद कर लेते हैं।
एक दूसरे को 'छू' कर मम्मी का प्यार महसूस कर लेते हैं।
बस ऐसे ही एक दूसरे को सहारा दे देते हैं।
मैं और मम्मी का कटोरदान।
सच माँ की कमी कोई पूरा नहीं कर सकता। इसलिये आज माँ है तो पल भर भी गंवाये बिना उनके साथ जिन्दगी जी लो।

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