डॉ. जहान सिंह 'जहान'
प्राकृति का ये सुन्दर आवरण ही
पर्यावरण है।
ये खूबसूरत धरती मां का घूंघट है।
उसकी लज्जा है, उसका श्रंगार है।।
तेरे-मेरे जीवन का आंचल है।।
ये पर्यावरण है।
मत करो मलीन इस मां के आवरण को।
तुझ पर से तेरा आंचल हट जायेगा ।।
तू बेसहारा हो जायेगा।
थम जायेंगी सांसे तेरी।
जब ये हवाएं-प्राण वायु,
जब ये जल-प्राण पेय,
मां को निष्प्राण कर जाएंगे।
बिन मां के तू कैसे जी पायेगा।
ये 'जहान' फिर यहीं थम जाएगा।।
मत करो इस का क्षरण।
प्राकृति का ये सुन्दर आवरण।
पर्यावरण है।।
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