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मुक्ति

रंजना मिश्रा

सुबह लगभग चार बजे का समय था। कड़ाके की ठंड के बावज़ूद वे रोज की तरह प्रातः भ्रमण के लिए निकले थे। सुनसान सडक के किनारे-किनारे चले जा रहे थे, जबकि लोग-बाग उस वक्त रजाइयों में लिपटे आराम से सो रहे थे। तभी उन्हें एक ऑटो पीछे से आता दिखाई दे गया। शायद उसे भी कोई मज़बूरी रही होगी, वरना इतनी सुबह, वह भी इस सर्द मौसम में, कोई कहाँ निकलता है जो उसे सवारी मिलती। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा और तनिक और किनारे हो लिए। हालाँकि सडक चौड़ी थी और कोई और गाडी चल नहीं रही थी तो हादसे की आशंका कहाँ थी। लेकिन उनके जैसे कुछ लोग हर जगह होते हैं जो प्रिवेंशन इस बेटर दैन क्योर के सिद्धांतो पर ही चलते हैं, चाहे जो हो जाये।
बावज़ूद इसके, ना जाने कैसे उस ऑटो ने पीछे से आकर उन्हें धक्का मार दिया और वे गिर पड़े। वह शायद भाग निकलता, लेकिन इत्तेफ़ाक कि धक्का मारते ही ऑटो का इंजन बंद हो गया था। वे गंभीर रूप से घायल थे, लेकिन ना जाने अचानक उनमे कहाँ से इतनी ऊर्जा आ गई कि उठकर खड़े हो गये और ऑटो वाले की कलाई इतने जोर से पकड़ी कि जैसे उसकी कलाई की हड्डी चरमरा गई हो।
ऑटोवाले ने कातर दृष्टि से उनकी ओर ताका जैसे कह रहा हो, छोड़ दो बाबूजी मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, भूख से मर जाएंगे।
उन्होंने एक नज़र ऑटो वाले के चेहरे पर डाली और उसे मुक्त कर दिया। मुक्त होते ही वह फ़ौरन वहाँ से भाग निकला। इधर वे बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े। बेहोशी की हालत में ही उनके अंदर एक दृश्य चलने लगा। देखा कृष्ण अपनी बांसुरी लिए सदा की तरह मुस्कुरा रहे हैं। उन्होंने दृढ दृष्टि से कृष्ण को देखा और मुस्कुरा दिये, बोले, "यह क्या प्रभु! तूने तो मुझे शतजीवी होने का वर दिया था। बोलो, चुप क्यों हो! क्यों दिया था वर!"
कृष्ण चेहरे पर मंद मुस्कान के भाव बिखेर कर बोले, "इस कलियुग में इतनी आयु कोई कम नहीं है वत्स! और जिसकी जो आयु होती है वही तो जीता है। प्रकृति द्वारा निर्धरित नियम को मैं ही बदल दूँ तो क्या यह उचित होगा वात्स!"
"फिर तूने वर ही क्यों दिया था प्रभु!" वे कृष्ण की ओर देखकर बोले।
कृष्ण सदा की तरह मुस्कुराते खड़े थे, बोले, "मैने ऐसा कोई वर तुम्हें नहीं दिया था वत्स! मैंने तो दीर्घजीवी होने का वर दिया था। 99 वर्ष की आयु कोई कम तो नहीं होती वत्स! तेरी यह आयु आज पूर्ण हो गई।"
उन्होंने उस वेदना की स्थिति में भी मुस्कुरा दिया, बोले,"तू बड़ा छालिया है प्रभु! तू सदा से छलता आया है। आज तुने मुझे छला है।"कृष्ण रहस्यमय ढंग से मुस्कुराए और उन्होंने हाथ उठाकर अपने भक्त को मुक्ति दे दी। आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी और उनका बूढा शरीर धीरे-धीरे निष्प्राण हो गया।

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