top of page

मुल्यांकन

डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव

एक बार एक शहर के मशहूर व्यापारी को एक महिला ने रात्रि भोज पर निमंत्रित किया। वैसे तो वह काफी व्यस्त रहते थे, लेकिन फिर भी उन्होंने उस महिला का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। जिस दिन का निमंत्रण था, उस दिन व्यापारी की व्यस्तता कुछ ज्यादा ही निकल आई। निमंत्रण स्वीकार किया है तो जाना तो था ही, इसलिए वह जल्दी-जल्दी काम खत्म करने लगा। जैसे-तैसे सारा काम निपटा कर वह महिला के घर पहुंचे। उन्हें देखते ही उस महिला की आंखें एकबारगी तो खुशी से चमक उठीं, लेकिन अगले ही क्षण उसके चेहरे पर निराशा के भाव आ गए।
दरअसल व्यापारी काम खत्म करके उन्हीं कपड़ों में वहां आ गए था। महिला की मायूसी का कारण पता चलने पर उन्होंने कहा कि 'देर हो जाने की वजह से उन्हें कपड़े बदलने का समय ही नहीं मिला।'
लेकिन महिला न मानी। उसने कहा, ‘आप अभी तुरंत मोटरगाड़ी में बैठकर घर जाइए और अच्छे से वस्त्र पहनकर आइए।’
‘ठीक है, मैं अभी गया और अभी आया।’ यह कहकर व्यापारी घर चला गया ।
जब लौटकर आये तो उन्होंने बहुत कीमती कपड़े पहने हुए थे। थोड़ी देर बाद अचानक सबने देखा कि व्यापारी आइसक्रीम तथा अन्य खाने की चीजों को अपने कपड़ों पर पोत रहा हैं। यह सब करते हुए व्यापारी बोला ‘खाओ मेरे कपड़ो, खाओ। निमंत्रण तुम्हीं को मिला है। तुम ही खाओ।’
‘यह आप क्या कर रहे हैं?’* सब बोल पड़े।
व्यापारी ने कहा, ‘मैं वही कर रहा हूं मित्रो, जो मुझे करना चाहिए। यहां निमंत्रण मुझे नहीं, मेरे कपड़ों को मिला है। इसलिए आज का खाना तो मेरे कपड़े ही खाएंगे।’ उनके यह कहते ही पार्टी में सन्नाटा छा गया। निमंत्रण देने वाली महिला की भी शर्मिंदगी की कोई सीमा नहीं रही। व्यापारी की बात का आशय वह समझ चुकी थी कि व्यक्ति का मूल्यांकन उसकी प्रतिभा और आचरण से किया जाना चाहिए, कपड़ों से नहीं।

*******

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page