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मेरा बटुआ

राजीव बंसल

खचाखच भरी बस में कंडक्टर को एक गिरा हुआ बटुआ मिला जिसमे एक सौ का नोट और भगवान् की एक फोटो थी।
वह जोर से चिल्लाया, “अरे भाई! किसी का बटुआ गिरा है क्या?”
अपनी जेबें टटोलने के बाद सीनियर सिटीजन सीट पर बैठा एक आदमी बोला, “हाँ, बेटा शायद वो मेरा बटुआ होगा, जरा दिखाना तो।”
“दिखा दूंगा - दिखा दूंगा, लेकिन चाचाजी पहले ये तो बताओ कि इसके अन्दर क्या-क्या है?”
“कुछ नहीं इसके अन्दर थोड़े पैसे हैं और मेरे प्रभु की एक फोटो है।”, चाचाजी ने जवाब दिया.
“पर भगवान की फोटो तो किसी के भी बटुए में हो सकती है, मैं कैसे मान लूँ कि ये आपका है।”, कंडक्टर ने सवाल किया।
अब चाचाजी उसके बगल में बैठ गए और बोले, “बेटा ये बटुआ तब का है जब मैं हाई स्कूल में था। जब मेरे बाबूजी ने मुझे इसे दिया था तब मेरे प्रभु की फोटो इसमें थी।
लेकिन मुझे लगा कि मेरे माँ-बाप ही मेरे लिए सबकुछ हैं इसलिए मैंने अपने प्रभु की फोटो के ऊपर उनकी फोटो लगा दी।
जब युवा हुआ तो लगा मैं कितना खूबसूरत हूँ और फ़िर मैंने माँ-बाप के फोटो के ऊपर अपनी फोटो लगा ली।
फिर मुझे एक लड़की से प्यार हो गया, लगा वही मेरी दुनिया है, वही मेरे लिए सबकुछ है और मैंने अपनी फोटो के साथ-साथ उसकी फोटो लगा ली। सौभाग्य से हमारी शादी भी हो गयी।
कुछ दिनों बाद मेरे बेटे का जन्म हुआ, इतना खुश मैं पहले कभी नहीं हुआ था। सुबह-शाम, दिन-रात मुझे बस अपने बेटे का ही ख़याल रहता था।
अब इस बटुए में मैंने सबसे ऊपर अपने बेटे की फोटो लगा ली।
पर अब जगह कम पड़ रही थी, इसलिए मैंने अपने प्रभु और अपने माँ-बाप की फोटो निकाल कर बक्से में रख दी।
और विधि का विधान देखो, फोटो निकालने के दो-चार साल बाद माता-पिता का देहांत हो गया और दुर्भाग्यवश उनके बाद मेरी पत्नी भी एक लम्बी बीमारी के बाद मुझे छोड़ कर चली गयी।
इधर बेटा बड़ा हो गया था, उसकी नौकरी लग गयी औऱ शादी भी हो गयी। उसके बाद बहू-बेटे को अब ये घर छोटा लगने लगा, उन्होंने दूर कहीं अपार्टमेंट में एक फ्लैट ले लिया और वहां चले गए।
अब मैं अपने उस घर में बिलकुल अकेला था जहाँ मैंने तमाम रिश्तों को जीते-मरते देखा था।
पता है, जिस दिन मेरा बेटा मुझे छोड़ कर गया, उस दिन मैं बहुत रोया। इतना दुःख मुझे पहले कभी नहीं हुआ था। कुछ नहीं सूझ रहा था कि अब मैं क्या करूँ और तब मेरी नज़र उस बक्से पर पड़ी जिसमे सालों पहले मैंने अपने प्रभु की फोटी अपने बटुए से निकाल कर रख दी थी।
मैंने फ़ौरन वो फोटो निकाली और उसे अपने सीने से चिपका ली। अजीब सी शांति महसूस हुई, लगा मेरे जीवन में तमाम रिश्ते जुड़े और टूटे, लेकिन इन सबके बीच में मेरे भगवान् से मेरा रिश्ता अटूट रहा। मेरा भगवान कभी मुझसे रूठा नहीं।
और तब से इस बटुए में सिर्फ मेरे प्रभु की फोटो है और किसी की भी नहीं और मुझे इस बटुए और उसमे पड़े सौ के नोट से कोई मतलब नहीं है, मेरा स्टॉप आने वाला है। तुम बस बटुए की फोटो मुझे दे दो। मेरा भगवान मुझे दे दो, बस।
कंडक्टर ने फौरन बटुआ चाचाजी के हाथ में रखा और उन्हें एकटक देखता रह गया।

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