मोहिनी शर्मा
मैं वो कल बनना नहीं चाहती,
जिसमें सिर्फ शेरों शायरी की बातें हो।
मैं वो आज बनना चाहती हूं,
जिसमें तुम्हारी, मेरी और जीवन,
की ढेरों प्यारी बातें हो।
जिसमें सलीक़ा हो जीने का,
थोड़ी खट्टी थोड़ी मीठी तकरार हो,
मैं वो ग़ज़ल बनना चाहूँगी,
जिसे तुम गाओ मेरे लिए।
मैं वो बहार बनना चाहूँगी ।
जिसमें कुछ गुनगुनाओ तुम मेरे लिए।
हर मौसम हम साथ रहे,
एक खूबसूरत एहसास की तरह।
मैं वो शब्द बनना चाहूँगी,
जिसे तुम बोलो रोज सुबह शाम मेरे लिए।
मैं वक़्त की वो याद बनना चाहती हूं,
जिसे जब भी तुम पढ़ो तो मुस्कराओ मेरे लिए।
मैं वो कल बनना नहीं चाहती,
जिसमें सिर्फ शेरों शायरी की बातें हो।
मैं वो आज बनना चाहती हूं,
जिसमें तुम्हारी मेरी और जीवन
की ढेरों प्यारी बातें हो।
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