डॉ सुषमा
सुबह सबेरे जब चिल्लाती
मेरी प्यारी अम्मा जी।
खाट खड़ी सबकी करवाती
मेरी प्यारी अम्मा जी।
नीम बबुर की दतुइन तोड़ के
सुबह सुबह हम लाते थे।
एक बल्टी औ लोटिया लइ के
कुआं किनारे जाते थे।
दुइ बल्टी पानी भरवाती
मेरी प्यारी अम्मा जी।
खाट खड़ी सबकी करवाती
मेरी प्यारी अम्मा जी।
चूल्हे में जब तवा चढ़ाती
हम को पास बुलाती।
आ जाओ सब भोजन करने,
जोरों से चिल्लाती
एक एक रोटी गरम खिलाती
मेरी प्यारी अम्मा जी।
खाट खड़ी सबकी करवाती ,
मेरी प्यारी अम्मा जी।
मोमफली औ शकरकंद को
आग में भूंज के रखती थी।
माटी की दुधहंडिया में वो,
दूध मूंद के रखती थी।
सबको मीठा दूध पिलाती,
मेरी प्यारी अम्मा जी।
खाट खड़ी सबकी करवाती
मेरी प्यारी अम्मा जी।
बप्पा को पानी देने वो,
जंगल भर में फिरती थी।
कभी किसी भी जीव जंतु से,
बिल्कुल भी ना डरती थी।
बिचखोपड़ी भी मार गिराती,
मेरी प्यारी अम्मा जी।
सबकी खाट खड़ी करवाती,
मेरी प्यारी अम्मा जी।
छोटी वाली भाभी ने कल
वीडियो कॉल मिलाया था।
फोन कनेक्शन होते ही
अम्मा जी को पकड़ाया था।
थोड़ा हो जाती जज़्बाती
मेरी प्यारी अम्मा जी।
खाट खड़ी सबकी करवाती
मेरी प्यारी अम्मा जी।
बिटिया तोहरी खातिर हमने
कल ही शहद लिया है।
तुरत पेड़ से तोड़ के छत्ता,
उसने हमें दिया है।
कबअउबू कह कर मुस्काती,
मेरी प्यारी अम्मा जी।
खाट खड़ी सबकी करवाती
मेरी प्यारी अम्मा जी।
सत्तर की होने को आई,
फिर भी मेहनत करती है।
हम सब भाई बहनों में वो
भेद भाव न करती है।
अब भी कितना प्यार जताती,
मेरी प्यारी अम्मा जी।
खाट खड़ी सबकी करवाती,
मेरी प्यारी अम्मा जी।।
*****
Comments