आकाश बाजपेयी
मेरा नाम सुमन है। मेरी शादी एक बड़े घर में हुई है। मेरे पति विनीत की फैमिली का अच्छा बिज़नेस है। विनीत एकलौते बेटे हैं।
सास-ससुर, मैं, और विनीत' हम चार लोगों का ही परिवार है। विनीत और पापा जी सारा बिज़नेस संभालते हैं, इसलिए उनके काम से वापस आने का कोई समय नहीं होता है। विनीत अब एक नया काम शुरू करने वाले हैं, जो एक नई जगह पर है। वहाँ पर हमारा एक फार्महाउस भी है, इसलिए हम दोनों कुछ दिन वहीं जाकर रहेंगे। फार्महाउस में समय बिताने के साथ विनीत अपना काम भी करते रहेंगे। सुबह जल्दी ही हम लोग फार्महाउस में पहुंच गए।
फार्महाउस की देखरेख के लिए एक नौकर, रामू, था। वह वहीं पास के एक कमरे में रहता था। हम जैसे ही पहुँचे, दूर से रामू दौड़ता हुआ हमारी कार के पास आया। आकर उसने ही कार का दरवाजा खोला और नमस्ते मालकिन कहते हुए हँसते हुए बोला। विनीत ने कहा, यह रामू है, हमारे फार्म की देखभाल करता है।
मैं अंदर जाकर बैठी। थोड़ी देर बाद विनीत अपने काम में बिजी हो गए। उन्होंने रामू से कहा कि मैडम को फार्म दिखा दो। रामू बोला, ठीक है साहब। वह मुझे फार्म दिखाने ले गया। फार्म में हम घूम रहे थे, तभी गेट के बाहर से एक लगभग 6-7 साल की लड़की ने रामू को आवाज लगाई, जो स्कूल से वापस जा रही थी। रामू बोला, मैडम, मैं आता हूँ। वह गेट पर खड़ा होकर उस लड़की से बात करने लगा। मेरी नजर पड़ी तो वह लड़की मेरी तरफ ही देखे जा रही थी।
फिर रामू वापस आकर बोला, मैडम, आप आराम करिये, मैं आता हूँ। ऐसा बोलकर वह चला गया। अगले दिन सुबह फिर विनीत अपने काम से जल्दी चले गए। मैं सुबह सोकर उठी तो मुझे दरवाजे पर रामू दिखाई दिया। मैंने पूछा, क्या कर रहे हो यहाँ पर? उसने बोला, मैडम, अभी आया हूँ चाय लेकर। मैंने कहा, ठीक है, यहाँ टेबल पर रख कर चले जाओ। फिर मैं नहा कर किचन में गई, तो रामू वहीँ था, और अपना कुछ काम कर रहा था। फिर उसने मुझसे बातें करने की कोशिश की, लेकिन मैं उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी।
यहाँ का पुराना नौकर था, इसलिए मैं उसकी बातें सुन भी रही थी। अगर ऐसा नहीं होता, तो शायद मैं उसे डांट देती। यहाँ आये हुए मुझे 2-3 दिन हो गए थे और मैंने नोटिस किया कि वह मुझसे बातें करने की कोशिश लगातार करता ही रहता था। एक दोपहर मैं कमरे में अकेली बैठी थी, तभी अचानक रामू कमरे में आता है और बोलता है, मैडम, मुझे कुछ पूछना है। मैंने कहा, क्या? उसने कहा, मैडम, आप बुरा मत मानना, पर क्या मैं आपकी एक फोटो ले सकता हूँ? मेरे मुँह से निकला, क्या? बाहर निकलो अभी कमरे से!
रामू बोला, मैडम, आप गलत समझ रही हैं, मेरी बात तो सुनिए। मुझे अचानक गुस्सा आ गया, और मैंने कहा, बाहर निकलो, या अभी तुम्हारे साहब को फोन करूँ। इतना बड़ा घर, और मेरे लिए तो अनजान ही था। ऊपर से वह इस तरह की बातें कर रहा था। मुझे कुछ अजीब लगा। मैंने सोचा, शाम को विनीत आएंगे तो सबसे पहले उसकी छुट्टी करवा दूँगी।
शाम को विनीत आए तो मैंने उन्हें सब बताया। विनीत मानने को तैयार ही नहीं थे। बोले, "यह कई सालों से है, उसकी एक बच्ची भी है। तुम कुछ गलत समझ रही हो।" उसकी बच्ची के बारे में मुझे पता नहीं था। मैंने कहा, "कई सालों से यहाँ कोई लड़की भी नहीं आई थी।" विनीत ने कहा, "रुको, अभी उसे बुलाकर बात करते हैं।"
विनीत ने रामू को आवाज लगाई। रामू आया तो विनीत ने कहा, "क्या हुआ, रामू? तुम्हारी मैडम कुछ कंप्लेंट कर रही हैं।" रामू ने कहा, "साहब, मैंने सिर्फ फोटो लेने को कहा था।" विनीत ने पूछा, "क्यों चाहिए तुम्हें फोटो?" रामू ने कहा, "साहब, आप तो जानते हैं, मेरी 7 साल की एक बच्ची है। उसकी माँ उसके पैदा होते ही चल बसी थी, और जब वह 2 साल की थी, तब हमारे घर में आग लग गई थी। भगवान की कृपा से हम तो बच गए, लेकिन उसकी माँ की सारी निशानियाँ खत्म हो गईं।"
"बिना माँ की बच्ची को संभालना बड़ा मुश्किल होता है, साहब। मैडम, उस दिन जब मैं आपको फार्म दिखा रहा था, तब स्कूल से घर वापस जाते वक्त उसने हमें देख लिया। मेरा घर यहीं थोड़ी दूर पर है, उसकी दादी उसे संभालती है। हमेशा मुझसे पूछती रहती थी कि पापा, मेरी माँ कैसी दिखती थी, कैसी चलती थी, कैसे बातें करती थी। मैं उसे कहता था कि वह बहुत सुन्दर थी। यहाँ गाँव में उसके जैसा कोई नहीं है। जब उसने आपको देखा, तो उस दिन उसने यही पूछा कि पापा, मम्मी ऐसी थी? मैंने कहा, हाँ, ऐसी ही थी। तब से जिद पर अड़ गई कि मुझे मैडम से मिलना है। वह मेरी मम्मी जैसी है।"
"वह अब स्कूल नहीं जा रही। इसीलिए मैंने आपसे बात करने की कोशिश की, ताकि आपको यह सब बता सकूँ। लेकिन आपका स्वभाव अलग है। फिर उसने आज सुबह से कुछ खाया नहीं। बोल रही है, 'पापा, फोटो लाना, मैं अपने स्कूल वाले दोस्तों को दिखाऊंगी कि मेरी मम्मी ऐसी थी।' तो मैंने कहा कि मैं तुझे फोटो लेकर दिखा दूँगा। वह बोली, पक्के से लाना।"
इतना कहकर रामू फूट-फूट कर रोने लगा। रोते हुए ही बोला, "बच्ची है, मैडम, उसका नसीब ही ऐसा है। पैदा होते ही माँ मर गई और बाप मुझ जैसा मिला। मैडम, हम साहब से कुछ भी बोल देते थे। साहब का कभी मुझे डर नहीं लगा। यही आदत मुझे पड़ गई, और मैंने आपको भी अपना समझ कर बोल दिया। आप मुझे बताने देतीं, तो मैं आपको भी बता देता।"
रामू की बातें सुनकर मुझे अपने आप पर गुस्सा आया। विनीत ने रामू को चुप कराया और कहा कि, "बच्ची को वहाँ क्यों रखते हो? उसे यहीं रखो। इतना बड़ा फार्महाउस है।" अगले दिन सुबह रामू अपनी बच्ची को लेकर आया। वह बच्ची को दूर से ही मुझे दिखा रहा था, शायद अब भी झिझक रहा था। मैं खुद बच्ची के पास गई और कहा, "अरे, हम यहाँ 4 दिन से हैं, और आप अब आ रही हो?" मेरे ऐसा कहने पर बच्ची के चेहरे पर जो मुस्कान आयी, वह अनमोल थी। वह मुझसे लिपट गई।
जब तक मैं वहाँ रही, मैं उसके साथ खेलती और हँसती रही। एक अलग खुशी मिल रही थी। अब वह एक वजह बन गई थी, मेरे वहाँ बार-बार जाने की!
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