मीनाक्षी पाठक
नैना मेरे मुझे छलने लगे
बेवजह ही बरसने लगे
जख्म हैं गहरा पर बाहर पहरा
रिश्तों के धागे कतरने लगे हैं
जुबान पर ठहरा दर्द है बहरा
और होंठ मेरे
मुझ पर हंसने लगे हैं
देता नही कोई साथ मेरा
पैर भी आगे पीछे
चलने लगे हैं
है तेज बहुत इस दिल की धड़कन
जैसे तन से प्राण निकलने लगे हैं
नैना मेरे मुझे छलने लगे है......
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