top of page

मैं कहानी हूं।

डॉ. जहान सिंह “जहान”

मैं कहानी हूं।
और कहां नहीं हूं मैं?
इसलिए
कहानी हूं मैं।
अनंत जगत की प्रथम नारी, प्रथम नर के प्रथम प्रेम से भाव प्रधान, शब्दविहीन उत्पन्न एक संस्कार हूं मैं। मेरा पहला रस श्रृंगार रस है। प्रेम के पालने में युगों-युगों तक निशचेतन स्वरूप, बंजारों सा जीवन, अनगिनत दिन-रातों का सफर, ध्वनि और संकेत ही मेरी जीवन वायु थी। मेरा पालना बदलता रहा, गोद बदलती रही। बचपन में भाषा से असमर्थ थी। हजारों हजार साल गूंगी रही। अपनी खुशी, दुख दर्द, ध्वनि और संकेतों द्वारा ही प्रसारित करती रही।
मैं मां की लोरी, बाबा का पंचतंत्र, दादी की कथा, भाभी के गीत, शायर की गजल, कवि की कविता, नृत्यांगना की ठुमरी दादरा बनी। यह सब मेरे स्वरूप हैं। मेरे ही पहर हैं। मेरा परिवार बहुत बड़ा था। एक ही छत के नीचे रहते थे। शब्दों और व्याकरण के रण क्षेत्र ने मेरा परिवार बिखरा दिया। एक दूसरे से अलग हो गए। सबने अपने-अपने घर बसाये, नये शहर ढूंढे और बिछड़ गए। मैं बूढ़ी हो गई पर अपना घर न त्याग सकी। अकेली रह गई। लोगों ने भुलाने की बहुत कोशिश की, पर मेरा वजूद कोई मिटा ना सका। मैं भटकती रही और मुझे हजारों हजार साल कोई स्थाई जगह नहीं मिली।
“जुबान से बोली गई
कानों से सुनी गई
कुछ याद रही
कुछ भूल गई।”
इंसान के सामने हजारों परेशानियां, प्रयास, खोज और विकास का खुला रास्ता, उत्साह, सफल-असफल प्रयोग। पर इस दौड़ में भी उसके साथ रही। फिर नया युग आया, पूर्ण भाषा विकसित हुई, कागज, रोशनाई, छापाखाना और फिर मिल गया मुझे मेरा घर।
“किताब जो अब मेरा स्थाई पता है।”
इस सब में श्रुति साधना का बड़ा योगदान है। मैं आभारी हूं। मुझे इस तरह जीवित रखा गया।
रचयिता का मान, पाठक का सम्मान, समाज का ज्ञान, हर घर और पुस्तकालय की शान हूं मैं। मैं कहानी हूं। बच्चों का कौतूहल, युवा की शिक्षा, बुढ़ापे की साथी और जीने की आस मैं, उपवन का सौंदर्य, दरिया की रवानी, पहाड़ों का दृढ़ संकल्प, रेगिस्तान में कैक्टस का फूल, सागर की लहरों का संगीत, चांद की खूबसूरती, तारों की बारात, प्रभात की पहली किरण, पक्षियों का कलरव, हिरण की कुलाच, शेर की दहाड़, मां की कोख में क्रीडा करता बच्चा, पिता के हाथ में कुदाल, मेले की भीड़ में बेहाल, नारी की शर्म और नर का भ्रम हूं।
लेखक जुबानी रोज गढी और सजोई जाती हूं। पल-पल भुलाई जाती हूं। दिन-रात सुनाई जाती हूं।
संसार का रचयिता भी मेरी गोद में पला है। दुनिया के हर सिंगार में बसी हूं। जी हां मैं कहानी हूं।
“कहने को अगर मैं ना हूं। तो यह ‘जहान’ बेजुबान हो जाए।
कुछ पलों में ध्वनि और संकेतों का पाषाण युग हो जाए।”

******

5 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page