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मैं तार घर हूं।

Updated: Aug 19, 2023

यह बात और है कि मैं अब बेकार हूं।
पर बीते वक्त का एक चमत्कार हूं।
वीराने में बेरौनक खड़ा हूं अब।
इस शहर के जंगल में पड़ा हूं अब।
मेरे कान तरसते हैं।
किसी के पदचाप सुनने को
जी हां मैं तारघर हूं।
वही विसराया हुआ तारघर ।
मेरे माता-पिता श्री कुक और व्हीटस्टोन ब्रिटिश परिवार के थे। जिन की कठोर तपस्या का फल हूं। मेरे पूर्वजों ने श्रेष्ठ प्रयोगशालाओं में वर्षों दिन-रात मेरा आवाहन किया। एक ऐसा अवतार। मेरा जन्म क्या एक जश्न था जहान में। एक अद्भुतपूर्व शक्ति का अवतार। मेरा बचपन बड़े लाड प्यार से खुशगवार माहौल में बीता।
मेरे जनक की तपस्या, परिश्रम अति सराहनीय है। देश-विदेश के शिल्पीयों ने गड़ा है। मुझको सजाया और संवारा है। मेरे लिए खिलौने भी सात समंदर पार से आए थे। मुझे रफ्तार बहुत पसंद थी। किसी की बात दूर-दूर तक जल्दी पहुंचाना मेरा उद्देश्य था। मेरा वो खिलौना “मोर्स कोड इनकोडिंग” कहलाता था। मैं अपने तार घर में लिखता था। वह संदेश पल भर में दूरदराज पहुंच जाता था।
मैं सूचना संदेश का नया अवतार था। मेरे पूर्वज जो संदेश आग दिखाकर, धुआं उठा कर, ढोल बजाकर, कबूतर उड़ाकर, चिल्लाकर पहुंचाते थे। वह थक चुके थे। मेरे जन्म के समय के साथ उन्हें विश्राम मिला और खुशी के साथ मुझे स्वीकार किया। अब सारा ध्यान मेरी ओर खिंच गया। लोग मुझे प्यार से “तार” कहने लगे। और यह मेरा घर ‘तारघर’ हो गया। मेरी सेवाओं की ड़ोरियां दूर-दूर तक फैलाई गई, गठबंधन किए गए और हम धीरे-धीरे एक दूसरे से जुड़ते गए। अति शीघ्र संदेश के लिए लोग मेरे तारघर आते और अपना संदेश शीघ्र ही अपनों को दूर-दूर तक पहुंचाते। मुझे बहुत अच्छा लगता था। मेरा जन्म सफल हो गया।
दिन-रात रौनक रहती थी मेरे घर में, प्रकाश, शोर-शराबा, चहल-पहल, मेरी सराहना, मेरी खुशी की कोई सीमा न थी। बच्चों के जन्म की सूचना, विवाह की सूचना, सफलता की सूचना, धन व्यापार की सूचना। हां कभी गम की भी सूचनाएं होती थी।
मैं बोझिल मन से पर अपना कर्म-धर्म मान कर उन्हें भी तुरंत भेजता था।
एक ही टेबल पर रखता था।
आंसू और मुस्कान।
मैंने रेलवे-परिवहन, जहाजरानी सेवा का भी सफलतापूर्वक संचालन किया। एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक पहुंचने की सूचना का भार भी मेरे कंधों पर था। देश-विदेश की संधियों, युद्ध विराम जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी मैंने ही किए संदेश माध्यम से। मुझे गर्व था अपने कार्य पर लोग मेरे जनक को धन्यवाद भी बोलते थे।
अब मैं ख्याति के शिखर पर था। जहां कोई बहुत दिनों तक नहीं रह सकता है। मेरी नई पीड़ी जन्म ले रही थी। फैक्स, टेलीप्रिंटर, कंप्यूटर, मोबाइल, ईमेल। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। नए का स्वागत पुराने की विदाई और धीरे-धीरे त्याग कर भूल जाना।
मेरे घर की रौनक जाने लगी, चहल-पहल कम हो गई, अब मैं लोगों का इंतजार करने लगा। कभी-कभी इतनी निराशा कि कई दिनों तक मेरी चौखट पर कोई आहट नहीं होती थी। मायूष, नम आंखें और थक कर सो जाना। तारघर के उपवन भी मलिन होने लगे। भवन भी जीर्ण-शीर्ण हो चला। एक दिन मेरे घर पर भी ‘सेवाएं समाप्त’ का बोर्ड लग गया।
लोगों ने रास्ते बदल लिए। मैं अकेला अंधेरी रातें, वीरांनगी, डर, घर में जीव जंतुओं का बास। रात मुझे सपना आया जल्द ही मेरी नई पीढ़ी का यहां घर बनेगा। इसी आशा से आज भी अपनी पुरानी यादों को सजोय, बेरौनक खड़ा हूं। जी हां मैं वही तार घर हूं।
“तारों से रिश्ता तोड़कर बेतार हो गए।
नई पीढ़ी के बच्चे बहुत होशियार हो गए।”
मेरा आखरी तार।
डॉ. जहान सिंह ‘जहान’

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