top of page

मैं मदिरालय हूं।

डॉ. जहान सिंह ‘जहान’

“देश का देशी मदिरालय।”
हताशा, निराशा, हर गम का औषधालय।।
चिंता हरक, कष्ट निवारक, थके हुओं का विश्रामालय।
टीन की चादर, घास का छप्पर या मिट्टी का खपरैला।
टूटा दरवाजा, गीला फर्श, बेंच, तख्त सब मैला।।
भले निवास हो उसका टूटा फूटा एक मकान।
पर करता सबका स्वागत सबका सम्मान।।
चाट पकौड़ी, लाई चना या हो आलू बंडा।
मूली गाजर, कटे टमाटर या मुर्गी का अंडा।।
साइकिल, रिक्शा, ऑटो, पैदल दूर खड़ा है गाड़ीवान।
एक दूसरे का स्वागत करता हर आने जाने वाला मेहमान।।
कोई आया लड़ के पीने, कोई पीके लड़ने जाएगा।
यह सब किस्से सौ ग्राम लगने के बाद बताएगा।।
दृश्य 01 :-
एक रुपए का गिलास,
दो रुपए का पानी,
पांच रुपए के सिगरेट, मसाला या बीड़ी का बंडल
ना किसी तरह का झगड़ा, ना कोई गड़बड़झाला।
ईमानदारी का लेनदेन, करे ना कोई घोटाला।।
उसूल का पहला पैग एक झटके में फिर चेहरे पर मुस्कराना।
होता है तो होने दो लीवर फेफड़ों का नुकसान।।
रेट लिस्ट में आंखें गढाते।
पव्वा, अध्धा का गणित लगाते।।
फिर दोस्तों के पास आ जाते।
मिलकर आपस में संजीदा हो जाते।।
सब जेब टटोलते, मुस्कुराते और अध्धी का जतन बनाते।
उन पैसों में, किसी के बच्चों की किताबें,
किसी के पत्नी की पायल,
किसी के मां बाप की दवाई
किसी के राशन का उधार शामिल हो जाता।
यह सही या गलत समाज के चिंतकों पर छोड़ देता।
चलो अब दरिया का रुख मोड़ देते हैं।।
दृश्य 02 :-
नाक विदारक बदबू, सांस उखाड़ू धुँआ, कान पकाता शोर।
हंसना, रोना, चिल्लाना और गाना करते बोर।।
कुछ घंटों में मदिरालय बचपन छोड़, जवानी में कदम रख लेता है।
फिर क्या हर खिलाड़ी जो अध्धी के लिए चंदा करता है।
वह लाखों और करोड़ों में खेलने की बात करता है।।
कुछ संवाद:-
मैं खुद्दार हूं।
बाप की भी नहीं सुनता, लाखों की दौलत पर ठोकर मार दी।
और अब शान से रिक्शा चलाता हूं, आदि, आदि।।
सब एक दूसरे की वाहवाही करते।
अंदर से मुस्कुराते।
जानते हैं कि बाहर निकलते ही जैसे मदिरा हल्की हो जाएगी।
यह बंदा भी हल्का हो जाएगा।।
डरते-डरते यदि घर होगा तो घर जाएगा।
नहीं तो प्लेटफार्म या फुटपाथ पर सो जाएगा।।
दृश्य 03 :-
लोहे की जाली में बंद, एक मुखी द्वार वाली खिड़की, मध्यम प्रकाश जीवित या जीवित सा दिखने वाला, भीतर से बहुत थका हुआ सेल्समैन एक हाथ में पैसा, दूसरे हाथ में पाउच का आदान-प्रदान करते-करते सुशुप्ता की अवस्था में जाने लगा है। रात गहरी हो रही है। नशा और नींद से बोझिल सब मदिरा प्रेमी उठ चले। जेब खाली, पेट में मदिरा, शरीर अनियंत्रित कल फिर मिलेंगे वादे के साथ बिखर जाते हैं। मदिरालय बंद हो जाता है। पर एक गहरी संवेदना का संदेश छोड़ जाता है।
यहां दुखी आता है और सुखी हो जाता है। एक दो घड़ी के लिए ही सही। दुनिया के पाखंडों से दूर, सरल, जात-पात, धर्म, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी की सीमा से उठकर एक मानव धर्म में बंध जाता है। कितना अद्भुत, पवित्र एहसास भर जाता है।
क्या आम जीवन में ऐसा मानव धर्म हम स्थापित नहीं कर सकते?
एक प्रश्न?

******

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comentários


bottom of page