पिंकी सिंघल
चाहूं जो रोना खुलकर मैं, तो कभी रो न पाऊं
तुम ही बताओ, मैं हृदय में उठता दर्द कहां छुपाऊं
बेहिसाब दर्द दिया माना तूने, यूं बहुत दूर मुझसे जाकर
मैं सोचूं भी जो तुझसे दूर होना, तो कभी हो न पाऊं
तुम हो गए हो शामिल, मेरे वजूद में कुछ इस तरह से
कि चाहूं भी तुम्हें गर भुलाना, तो भुला न पाऊं
मेरे जीने का सहारा बन गई हैं, सब स्मृतियां तुम्हारी
तुम्हारी यादों को तुम ही बताओ, अब मैं कैसे बिसराऊं
कोई समझे न कभी पीर यहां, किसी भी बेगाने की
तुम्हारे सिवा बताओ, उम्मीद अब मैं किससे लगाऊं
हो तुम ही इबादत मेरी, हैं ये सांसें भी तुमसे
होकर जुदा तुमसे जीना अब, बड़ा मुश्किल मैं पाऊं
लाफ़ानी है मेरा इश्क़ यह तुमसे, इतना जान लो तुम
तुम्हारे सिवा बात यह बताओ और मैं किसको बताऊं
है संतप्त रूह माना बहुत, तुमसे अज़ीज़ पर कुछ नहीं
तुम्हें भूलने से पहले मेरी जान, जान से मैं जाऊं
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