ओम प्रकाश तिवारी
बात-बात में बात हो गई।
पार उमरिया साठ हो गई।।
अम्मा ने जो की बतकहियाँ।
आज वही ज़ज्बात हो गई।।
पिता तुम्हारे संघर्षों की।
सीख मेरी सौगात हो गई।।
उतने पाँव पसारे जितनी।
चादर की औकात हो गई।।
ऐसा प्यार मिला मित्रों का।
जब चाहा बरसात हो गई।।
तीन बेटियाँ रत्न स्वरूपा।
मिलीं तो फिर क्या बात हो गई।।
जीवन साथी साथ तुम्हारा।
खुशियाँ सब खैरात हो गई।।
ऋतु वसंत बन गई जिंदगी।
सब कुछ रातों-रात हो गई।।
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