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रूसेड़ी बीनणी

जब कभी कुछ भी न चल रहा होता है, तब बहुत कुछ मौन होकर घटा करता है। हर घटनाओं का अंत दुखांत हो यह जरूरी नहीं।
अचानक आँख खुली...!
अरे! रात के ढाई बज गये। एकल स्लीपर सीट पर सोया-सोया गूलल मैप पर देखा जोधपुर आ गया क्या?
कंडेक्टर ने आवाज दी......पावटा, राई का बाग, जोधपुर वाले आ जाओं।
तुरंत नीचे उतर गया सीट से। और बस से नीचे आ गया।
13 दिन पहले आया था तो पता था रास्ते का। राई बाग बस स्टेण्ड पर आ गया। और वहाँ कुर्सियों पर घोड़े बेच कर तो क्या थे ही नहीं बेचने को, लेकिन सो गया।
5 बजे उठा। 30 रूपयें देकर सुलभ शौचालय में तरोताजा होकर आया। वापस घर लौटने की टिकट बनवाई। जेब में रूपये 40 बचे थे। तो एटीएम से रूपये निकाल कर टिकट बनवाई।
थोड़ी देर बाद.....! जिसका इंतजार था बार-बार फोन चेक कर रहा था। वही हुआ...!
कभी-कभी चिंताओं के घेरें में जकड़ा आदमी भी बहुत खुश होता है क्योंकि वहाँ कोई प्रतिशोध या विषाद नहीं होता इसलिए कुछ चिंताओं का परिणाम सुखदायी होता है।
पहुँच गये क्या गुड़िया के पापा...!
तबीयत तो ठीक है न आपकी, गले में आराम आया थोड़ा बहुत।
आराम से जाकर वापस आ जाओं....!
हाँ! पहुँच गया। रात ढाई बजे उतर गया था। तबीयत ठीक है।
तुम कैसी हो! दवा ले रही हो न! भूल तो नहीं रहीं न लेना।
ना ओ!
खाना जल्दी खाना सीख लो। तेरी आदत है देर से खाना खाने की।
हूँ खास्यूँ।
पेट में बेबी लात मारसी तेर्र बी न भूख लाग सी जणा।फेर्र मन्न बोल्ल सी थारों बेबी मेर्र लात मार्र।
(वो मैसेज टाईप कर रही थी......)
मैं बार-बार उस मैसेज को पढ़ रहा था। जो सिर्फ मैसेज भर न था।
सुबह उठते ही पूछना अपने पति से
'आप कैसे है?'
गुड़िया के पापा!..... जाकर वापस आ जाओं!
कितनी भावुक होगी जब उसने ऐसा कहा....!
जाकर वापस आ जाओं.....! इंतज़ार करती बैचेन आँखें, हृदय में एक सूनापन पति के पास न होने पर!
क्या समझ सकेगा पुरूष अपनी पत्नी के हृदय के मर्म को या शब्दों के छल में ही बेवकूफ बनाता रहेगा हमेशा।
मेरी पत्नी सबसे अच्छी है, और नहीं तो कम से कम मुझसे तो अच्छी है इसमें कोई संशय है।
(इतने में मैसेज आया)
'मैं थार सूँ कोनी बोलूँ, मैं रूसेड़ी हूँ।'
क्या! कल की रूसी हुई है तू!
हाँ! थार्र के फर्क पड़्ड़ है!
क्यूँ रूसी तो,मन्न तो बेरो कोनी क्यूँ रूसी तू।
बता न के बात होई,प्लीज!
मेरी सयाणी प्यारी सी बावली है न।
बता न! ओ गुड़िया की मम्मा!
थार के फर्क पड़े है? मन्न मनाया भी कोनी....!
क्या हुआ होगा! मैंने क्या कहा ऐसा! कुछ समझ में नहीं आ रहा। वो रूठी है पर क्यों! क्या हृदय की कोमलता पर मैंने कोई आघात किया या मेरे किसी व्यवहार से,बात से कोई चोट पड़ी दिल को।
फ्लैशबैक में जाकर सोचता हूँ तो कुछ याद नहीं आ रहा।
पत्नी कहाँ बेवजह रूठी होगी,कुछ तो है जिसका मुझे आभास ही नहीं, पर मूर्खों को कहाँ कुछ याद रहता है वो तो बकते रहते है बस। कोई बीज वाक्य कहाँ उनके पास होते है।
ऐ गुड़िया की मम्मा! मान जा न।
मेरी प्यारी पत्नी है न, सॉरी!
बस! रहने दो। आपको पता नहीं तो सॉरी क्यों बोल रहे है।
तू सच में नाराज है।
हाँ!
उसने प्यार का संदेश भेजा गुड़िया के पापा को।
ओ! मतलब तुम मुझसे प्यार नहीं करती गुड़िया के पापा को प्यार करती हो।
हाँ! गुड़िया के पापा को करती हूँ प्यार! आपसे नहीं।
चोखो जणा रह तू रूसेड़ी! मैं कर ही स्यूँ प्यार! मैं कोनी रूस्यों तू रूसी है।
वो खुश हो गई। चूमने वाला ईमोजी भेजी।
हूँ! अब मन्न बेरो पड़गो तू रूसेड़ी कोनी,बस! मजा ले है मेरा!
ना! सच में रूठी हूँ।
ठीक है जणा मैं सर(उसके जीजाजी) ने फोन कर कह दे स्यूँ ' म्हाली बावली तो रूसगी'
कुण मन्ना कर्यो थान्न। अभी करो!
ना! न कर सकूँ जणा तू बोल्ल कह दो।
कह दो कोई कोनी मन्ना करें।
(मैंने मुँह फुलाया झूठमूठ। पर उसको नहीं पता)
दीदी कन्न मेरा फोन नं. है।
ना! मेरे पास तो है।
मैं दीदी को फोन कर कह देस्यूँ, छोटी दीदी के मोबाइल नम्बर है पास। मैं कह दूँगा। फिर ले दीदी चिड़ायेगी रोज तुमको।
हूँ! कह दो।(उसको पता है मेरे पास नम्बर नहीं है।)
ओ रूसेड़ी बीनणी!
मान भी जा। वरना मैं कहानी लिख दूँगा।
'रूसेणी बीनणी' छपवा भी दूँगा।
लिख दो! छपा दो!
मैं सेमिनार में शोधपत्र पढ़ते समय बोल दूँगा मेरी बावली रूसरी है।
हूँ! कह दियों। मन्न कोई कोनी जाण्ण।
ऊई! ये तो है।
गुड़िया की मम्मा मान जा न।
अब थे जाओं। सेमिनार अच्छे से अटेंड करना। मूड ऑफ मत करो। मैं ठीक हूँ।
ओ रूसेड़ी बीनणी। रूसरी भी है और बोल्ल भी है। कितनी प्यारी हो रूप तुम। मेरी रूप मुझे बहुत प्रिय है।
बस! बस! मसको मत लगाओं।
ठीक है। गुड़िया के पापा मैं अब काम करूँगी। सेमिनार की अच्छे से तैयारी कर लो। नाश्ता तो कर लिया न।
मैं सोचने लग गया। पत्नी का संसार पति के संसार से बिल्कुल विपरीत होता है। पत्नी रूठी हो फिर भी अपने पति, बच्चें, सास-ससुर घर भर की जिम्मेदारी निभाती है भले हीं आँखों की कोर में आँसुओं का सागर लहराता हो, उसका आँचल हमेशा से प्रेम से भीगा रहता है।
पुरूष कितना निष्ठुर और कर्कश होता दो मीठे बोल भी नहीं बोल सकता।
सुधरना पड़ेगा मुझे तो! पर सुधारूँ क्या समझ नहीं आ रहा।
उदासी तो नहीं पर मन में अजनबीपन स्वयं के प्रति अवश्य उभर आया। उदास मेरी बावली होने नहीं देती।भले। उदासी झलकने से पहले ही प्रेम का लेप लगा देती है और मुझे पता भी नहीं चलता उनकी मन की दशा का। औढ़ लेती है प्रेम की चादर और छुपा लेती है वो मर्म जिनसे पुरूष का व्यक्तित्व तिरोहित हो जाता है किन्तु स्त्री देवी की पदवी तक पहुँच जाती है।
मन में कितना कुछ चल पड़ा। पत्नी रूठी है फिर भी चिंता है उसे अपने जीवन को छोड़ सबकी।
मैं उसे जब-जब बावली कहता हूँ वो खुशी से झूम उठती है। परिन्दें की भाँति आकाश में उड़ना चाहती है। मैं कहता हूँ तुम बहुत मीठी हो तो बोलती है मैं तो तीखी हूँ सब यही समझते है। मैं कहता हूँ मीठा मीठे का स्वाद कैसे जाने। तो बोलती है, थे ही हो मीठा मैं तो तीखी हूँ।
तुम बहुत प्यारी हूँ रूप! जिन्होंने तुमको कुछ न समझा,मैंने उसको कुछ न समझा।
वो खुश हो जाती है वो चाहती मेरा एकनिष्ठ अनन्य समर्पित प्रेम। वो जानती है सीधी-साधी प्रेम की भाषा,निश्छलता बच्चों सी, चहती है चिड़िया-सी सारे दिन। मेरे घर संसार जीवन को महकाया करती है।
जब वो रूसेड़ी बीनणी होती है तब पता नहीं लगने देती वो रूसी हुई है वो जिस दिन ज्यादा प्रेम प्रकट करती तब पता लगता है वो रूसी हुई है।
संसार भर के पुरूष स्त्री को अपने-अपने नजरियें से देखते है और उसी के अनुकूल उसे ढालते है, स्त्री के नजरियें से पुरूष का ढलना ही पुरूषार्थ का सबसे बड़ा धर्म है।


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