भगवती प्रसाद वर्मा
मेरी शादी को लगभग 6 महीने हो चुके थे। अपनी पसंद की शादी करने के लिए मैंने बहुत पापड़ बेले थे। हमारे घर में यह पहली एक ऐसी शादी थी, जो घर वालों की मर्जी से नहीं हुई थी। लड़की मैंने खुद पसंद की थी।
मुश्किल तो बहुत आई सभी को मनाने में, पर बहुत कोशिश करने के बाद मां-बाबा मान गए और फिर बाकी रिश्तेदारों को भी धीरे-धीरे उन्होंने मना लिया।
मैंने अपनी मर्जी से शादी तो कर ली, परंतु 6 महीने के बाद कुछ ऐसा महसूस हो रहा है, जैसे बहुत सारी बातों को मैंने नजर अंदाज कर दिया। जो कि परिवार में रहने के लिए लाजमी होती हैं।
मां ने तो बहुत समझाया था, परंतु मैंने अपनी जिद् पकड़ रखी थी, तो फिर मां बाबा भी मान गए थे।
आज 6 महीने बाद जब बैठकर उन सारी बातों का निचोड़ निकालता हूं तो समझ में आता है कि बहुत कमी रह गई.. जो कि पहले नजर नहीं आई।
रेशमा जब हमारे घर में नई-नई आई थी, तो मां बाबा ने काफी प्यार दिया और घर के रीति रिवाज सीखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। परंतु रेशमा ने काफी जगह पर बचपना दिखाया। वह शादी से पहले जैसा बर्ताव करती थी, शादी के बाद भी वैसी ही रही। उसने कभी भी यह महसूस नहीं किया कि अब वह एक परिवार में है। परिवार में रहकर हमें कुछ जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं।
मां आए दिन मुझे कहती रहती थी कि "बेटा तुम्हारी बहू सजने सवरने पर ज्यादा ध्यान देती है, और घर के काम में उसका योगदान बहुत कम है... वैसे तो पहले भी यह सब काम मैं करती थी, परंतु बहू के आने के बाद थोड़ा बहुत आराम तो मिलना ही चाहिए।"
मैं सोच में पड़ जाता था कि अब रेशमा को क्या कहूं ....क्योंकि बच्चों को तो समझाया जा सकता है, परंतु ऐसा इंसान जिसकी शादी हो चुकी है, उसको यह छोटी-छोटी बातें क्या ही समझाई जाएं। आखिर एक दिन मैंने रेशमा को अपने पास बैठा ही लिया और पूछने लगा कि "रेशमा तुम जो खाना खाती हो वह कौन बनाता है?"
तो उसने जवाब दिया, "मां बनती है।"
फिर मैंने पूछा, "कपड़े कौन धोता है?"
तो उसने जवाब दिया: "मां धोती है।"
फिर मैंने पूछा, "घर की साफ सफाई कौन करता है?"
तो उसने कहा, "मां करती है।"
फिर मैंने उससे पूछा, "तुम दिन भर क्या करती हो? तुम्हारा मन कमरे में उदास नहीं होता?"
तो उसने जवाब दिया, "मैं आपके दफ्तर जाने के बाद अपना कमरा ठीक करती हूं, और फिर नहा कर तैयार हो जाती हूं। फिर मां जी नाश्ते के लिए आवाज देती है, और मैं नाश्ता करके फिर अपने कमरे में आ जाती हूं और उसके बाद कुछ देर टेलीविजन देख लेती हूं या फिर इंटरनेट पर कुछ शो देख लेती हूं। जब तक शाम हो जाती है और आप आ जाते हो"
फिर मैंने रेशमा से कहा, "यदि हम मां बाबा से अल्ग रहे तो कैसा होगा?"
तो उसने कहा, "यह तो अच्छा ही होगा। कम से काम मैं खुलकर जी तो पाऊंगी।"
मैंने रेशमा से कहा, "तो अभी तुम्हारे जीवन में क्या दिक्कत है?"
तो उसने कहा, "मुझसे मिलने मेरी सहेलियां नहीं आ सकती उन्हें मेरी सास से डर लगता है और मुझे भी कहीं जाना हो तो बहुत बार पूछना पड़ता है। बहुत बंधन सा लगता है।"
फिर मैंने उससे पूछा कि "जब हम अलग रहेंगे तो, फिर मां तो वहां नहीं होगी, तो तुम खाना कैसे खाओगी? तुम्हें खाना कौन बना कर देगा?"
तो उसने कहा, "हम नौकर रख लेंगे।"
फिर मैंने उससे कहा कि क्या तुम मेरे घर को अपना घर नहीं समझती हो? उसने कहा क्यों नहीं समझती जब आप मेरे हो तो, आपका सब कुछ मेरा है।
तो फिर मैंने कहा, कि जब घर तुम्हारा है, तो तुमसे अधिक उसका ध्यान और कौन रख सकता है? क्या तुम मुझे भी किसी और को सौंप सकती हो? जैसे तुमने वह घर नौकरों के हवाले सौंपने की बात की।
तो उसने कहा, बिल्कुल नहीं यह तो बहुत गलत बात हो जाएगी।
फिर मैंने कहा, ऐसे ही मेहनत करके जो घर हमने बनाया है और मेहनत करके जो अनाज हम घर में ला रहे हैं, उसे पकाने में या उस घर की देखभाल करने में तुम अपना योगदान नहीं दे रही है। मतलब तुम सिर्फ खुद से ही प्यार करती हो और मुझे नहीं" तब लगा कि शायद रेशमा के दिमाग में बातें समझ में आई क्योंकि उसकी आंखें थोड़ी सी नम हो गई थी। वह बुरी लड़की नहीं थी, बस थोड़ा बचपना था और बिन मां-बाप की बच्ची थी, इसलिए घरेलू लोगों के साथ कैसे रहा जाता है, वह नहीं जानती थी।
मैंने उसे समझाया कि मां पहले भी घर का सारा काम करती थी क्योंकि वह इस घर को अपना समझती है। तो यदि तुम भी उनके साथ मिलकर काम कर लिया करो तो कुछ समय मां भी आराम कर लेगी। मिलजुल कर काम करने से काम जल्दी खत्म हो जाता है। काम किसी बाहर के लोगों का नहीं है, वह तो हमारे अपने घर का ही है और जब जरूरत होगी तो हम घर में नौकर भी रख लेंगे। जो तुम लोगों की मदद कर दिया करेगा परंतु ऐसे पूरा दिन अपने कमरे में बैठे रहना और बस सजना सवरना या फिर अपना मनोरंजन करना तो, यह अच्छी बात नहीं है। क्योंकि मां भी पूरा दिन काम में उलझी रहती है उनका भी मन करता है कुछ समय आराम करने का।
रेशमा को कुछ शर्मिंदगी महसूस हुई और वह मां के पास जाकर बात करने लगी। मां ने उसे प्यार से गले लगा लिया। अगले दिन से रेशमा मां के साथ मदद करवाने लगी और घर के काम खत्म करके दोनों अपने-अपने कमरे में आराम करती थी। कहीं ना कहीं मेरे मन पर भी जो भार चढ़ गया था, वह भी कुछ खाली हो गया क्योंकि मुझे लगा कि मैंने जो अपनी मर्जी से शादी की है, उससे मैंने घर वालों को किसी मुसीबत में डाल दिया। परंतु रेशमा ने मेरा मन हल्का कर दिया और घर वाले भी कुछ चिंता मुक्त हो गए।
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