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रोशनी में कैद अंधेरा

मिट्ठू मिंटू बन गया।

डॉ जहान सिंह ‘जहान’

तोता काशीराम 30 साल जंगल में मुनीम की नौकरी करके सेवानिवृत्त हो गया था। वह अपनी पत्नी झुमकी बाई और चार बच्चों के साथ, अपना मकान उसी जंगल के एक दरख्त में बनवाकर शांति की जिंदगी गुजारने लगा। उसका छोटा बच्चा गोलू बड़ा सुंदर और नटखट, बस्ती के सारे तोता उसे प्यार से मिट्ठू कहते थे। माँ झुमकी बाई उसे बहुत चाहती थी।
एक दिन काशीराम अपने बच्चों को मेला दिखाने ले जा रहा था। अचानक आंधी आई। सब इधर-उधर भागने लगे। मिट्ठू रास्ता भटक गया। प्राकृतिक जंगल से निकालकर कंक्रीट के जंगल एक महानगर में आ गया। भूख-प्यास, अनजान जगह, अजनबी आवाज़ें, तेज रोशनी कोई साथी ना संगी। अगर उसके साथ था तो बस उसका नसीब। सुस्ताने के लिए उतरा। वो गगन चुंबी इमारत का पेंट हाउस था। एक बूढी दादी लान में बैठी चाय पी रही थी। मिट्ठू डरा सा, घबराए सा उनकी तरफ देख रहा था। दादी मां को दया आई और सोचा इतना छोटा बच्चा रात में कहां जाएगा। शायद रास्ता भटक गया है। दादी ने प्यार से मिट्ठू मिट्ठू बोला। वह धीरे-धीरे दादी की तरफ सामने रखे गमले के पास बैठ गया। दादी ने ब्रेड के टुकड़े उसके सामने रख दिए। दिनभर का भूखा मिट्ठू बड़े चाव से खाने लगा। दादी ने थोड़ा पानी पास में रख दिया। पानी पीकर वहीं बैठ गया। दादी ने सोचा सुबह चला जाएगा। दादी बहुत देर तक उसके पास बैठी रही। मिट्ठू सारी रात मां की याद में रोता रहा।
अगले दिन सुबह घर के छोटे बच्चों ने देखा और दादी से उसको पालने के लिए जिद करने लगे। पेंट हाउस एक बड़े फिल्म इंडस्ट्री के प्रोड्यूसर का था। बच्चों की खुशी के लिए एक बड़ा और खूबसूरत पिंजरा मंगवाया गया।
मिट्ठू अब एक मकान मालिक हो गया। कुछ दिन अंनबना रहा। फिर धीरे-धीरे नए वातावरण का रंग चढ़ने लगा। जंगल में मां धार्मिक और प्रेरणादायक कहानी सुनाती थी। पर यहां रोज संगीत, तेज रोशनी, शोर, दूषित भाषा का प्रयोग, धुआं नशा, दौलत की बातें होती थी। दादी को छोड़कर घर के लोगों ने मिट्ठू को भी अपने रंग में रंग लिया था।
मिट्ठू अब अंग्रेजी में बात करने लगा। सिगरेट, शराब, एयर कंडीशन, थाई, चाइनीस पिज़्ज़ा, पास्ता, मैंगी का आदी हो चुका था। पार्टी में आने वाली महिलाओं से भी फ्लर्ट करने लगा था। मिट्ठू जो मिंटू हो गया था। एक रात अचानक वह चक्कर खाकर गिर गया। तुरंत डॉक्टर आया, चेकअप हुआ, हाई ब्लड प्रेशर, लो शुगर, एक किडनी की बत्ती बंद, लीवर और लंक्स फुंक चुके थे। एक हफ्ते वेंटीलेटर, आईसीयू में रहकर घर लौट आया। घर में ये सब किसी न किसी सदस्य को होता रहता था। बस दादी को चिंता हो गई। क्योंकि उन्होंने ही घर में पनाह दी था। और इस मासूम को अपनी ही आंखों के सामने बिगड़ता देखा है।
एक दिन मिंटू रेवन का गौगल, लंबी सिगरेट, हाथ पर स्कॉच की बॉटल, रॉक एंड रोल चेयर, आई डोंट केयर का भाव, सन बाथ, लेता हुआ लैपटॉप पर सर्फिंग कर रहा था। अचानक डिस्कवरी चैनल खुल गई। पेड़-पौधे, हरियाली, नदिया, झरने, पंछी, एक तोतों का झुंड सामने से गुजरा। मिट्ठू ने बड़े अकड़न के साथ उन्हें देखा और फिर खुद को दिखा। उनसे कहा, “मुझे देखो, मेरे पास क्या नहीं है?” फिर पूछा तुम्हारे पास क्या है। एक नन्हें बच्चे ने कहा, “मेरे पास मेरी मां है।” मिंटू बेचैन हो उठा। पुरानी यादों का एक साथ तूफान आ गया। मां-बाप की याद आई। आंखों पर आंसू सुबक-सुबक कर रोने लगा। अचानक चिल्लाने पर दादी दौड़ी आई। क्या हो गया? लैपटॉप की स्क्रीन पर जो दृश्य देखा उन्हें समझने में देर न लगी। घर की याद, वतन की याद दादी ने अपने बच्चों की चिंता लिए बगैर। मिंटू को मुक्त करने का फैसला कर लिया। दादी की आंखों में आंसू। प्यार से उस पर हाथ फेरा और कहा, “मिंटू इस नर्क से दूर अपने सुंदर जीवन में वापस लौट जा।” और पिंजरे का दरवाजा खोल दिया। मिंटू ने आंखों से दादी को धन्यवाद दिया। पंजे उठाये, पंख फड़फड़ाये, लेकिन उड़ा ना सका, पिंजरे में फिर गिर गया। वह उड़ाना भूल चुका था।
नई जीवन शैली का इतना जहर पी चुका था।
‘जहांन’ वो उड़ाना भूल चुका था।।
परिंदा उड़ाना भूल जाए तो परिंदा नहीं रहता।
बिन मां-बाप के घर-घर नहीं रहता।।
बड़ा मासूम था मिट्ठू, मिंटू बनकर क्या मिला।
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1 comentario


Invitado
27 feb

Very true to contemporary times

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