सविता पाटील
चल, लौट जाते हैं अब
चलते-चलते दूर तक
निकल आए हैं अब!
पलटकर देखूं तो,
नज़र में कोई नहीं है,
या तो मैं नहीं हूं किसी की…
या कोई मेरी हद में नहीं है!
किसी की आवाज़ भी…
मुझ तक पहुंचती नहीं,
और मेरी पुकार पलटती है मुझ पर!
चल, लौट जाते हैं अब!
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