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लक्ष्मण रेखा

"मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरूडध्वज,
मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि!!"

हॉल में पंडित जी के पवित्र वेद मंत्रों की ध्वनि गूँज रही थी । अंबर और अवनि पावन अग्नि के समक्ष परिणय सूत्र में बँधने के लिए की जाने वाली अनेक रस्मों से थके थके से नजर आ रहे थे। अँबर तो मन ही मन कब से सोच रहा था कि पंडित फेरे डालने के विधि विधान सम्पूर्ण करें तो जल्दी से विदाई बेला आये। तब जरा सी देर लेटकर अपनी कमर सीधी करने का मौका मिल जाए।
तभी पंडित जी की आवाज़ गूँजी--
"जजमान अब दूल्हे की बहिन या बुआ यहाँ आकर दूल्हे के पटके को दुल्हन की चुनरी से बाँध दीजिए। अब दूल्हा दुल्हन सप्तपदी फेरों के लिए तैयार हैं।
और हाँ, हमारे जजमान जी, आप जरा बिटिया रानी के शगुन नेग का लिफाफा भी तैयार रखिए।"
पंडित जी के हल्के-फुल्के हँसोड स्वभाव अंदाज से परिचित, हाल में मौजूद सभी रिश्तेदार हँसी की फुहारें छोड़ रहे थे।

पंडित के कहने पर दीदी ने अवनि के साथ अँबर का गठबंधन कर दिया। गहरे रंग के जामुनी जोड़े में सजी संवरी अवनि का रूप सौन्दर्य देखते ही बनता था, बसरा मोती और कुंदन के जड़ाऊ चमकते गहनों में उसका अप्रतिम सौंदर्य की रूप माधुरी पान से अँबर के चकोर नैना तृषित से थे ।
बेहद मँहगें दुल्हन के साज सिंगार में फालतू दिखावटीपन की बनावट नहीं थी।

अवनि की शालीनता और सौम्यता उसके व्यवहार से लक्षित हो रही थी। दुल्हन की बेशकीमती सजी पोशाक और आभूषण में उसका गोरा कुंदन सा बदन अप्सराओं सा निखर उठा।
अबंर ने भी दुल्हन के रंग से मैच करते हल्के जामनी रंग की शेरवानी पहनी थी। साथ में सफेद लकदक मोतियों की माला जो दूर से जामुनी रंग वाली किरणों से झिलमिल कर रही थी।अँबर के सौन्दर्य को द्विगुणित कर रही थी।
साथ में झकाझक सफेद अलीगढ़ी पायजामा था। सुरूचिपूर्ण खूबसूरती से सजा धजा अँबर दूल्हे के वेष में बहुत ही मनमोहक लग रहा था।

पंडित जी के कहने पर अब वे दोनों धीरे धीरे चलते हुए अग्नि के चारों ओर फेरे लगा रहे थे।
पंडित जी ने अपनी आदत के अनुसार अवनि और अँबर को हँसी खुशी सात फेरों का महत्व बताते जा रहे थे।
उन दोनों से सुख दुख में साथ निभाने की रस्में कसमें भी पूरी कराते हुए पंडित जी अवनि से बोले कि--
" आज से आप दोनों एक दूसरे के साथ वचनबद्ध होकर मंगल परिणय सूत्र में बँध गए हैं।
बिटिया रानी चार फेरे में तुम्हारे कदम पहले बढ़ेंगे और अँबर तुम्हारा अनुसरण करेगा।"
"ससुराल में परिजनों की सेवा सुश्रुषा एवं पति की मान मर्यादा का ध्यान रखते हुए तुम्हें जीवन में हम-कदम बनकर अँबर का सुख दुख की मुश्किल घड़ी में साथ निभाना होगा ‌।"

"और अँबर तीन फेरे में तुम्हारे कदम पहले आगे बढ़ेंगे जिसमें जीवन सुचारू रूप से चलाने के लिए अवनि बिटिया तुम्हारा अनुसरण करेगी।
और इसके लिए तुम्हें अवनि बिटिया के भरण पोषण के साथ उसके सुख दुख का पूरा ध्यान रखना होगा।
जीवन चर्या की नौकरी व्यवसाय आदि कार्य को अपनाते हुए अपने जीवन के स्वर्णिम पल अवनि की झोली में खुशी खुशी डालने होंगे।"
"आज पावन अग्नि को साक्षी मानकर आप दोनों वैवाहिक बँधन में बँध गए हैं। आज से आप दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। रिश्तों को पावन मजबूत बनाने के लिए आप दोनों को जिन्दगी में,एक दूसरे से कोई भी दुराव छिपाव नहीं रखना चाहिए।"

बात ही बात में पंडित जी ने दूल्हे दुल्हन को सात फेरों के वचन आदि समझाकर शादी की रस्में पूरी करा दी।
नियम से सारी रस्में निभाने के बाद जल्दी ही विदाई बेला भी आ पहुँची।
आज उनकी लाडली बिटिया मायके का घर आँगन छोड़कर आज ससुराल की देहरी पर जा रही है।
मन को लाख समझाने के बाद भी अवनि के पापा और मम्मी का जी हल्कान हुआ जा रहा था।
बाबुल का नैहर छोड़ते हुए अवनि की आँखों से आँसुओं की गंगा यमुना बह रहीं थीं।
सबसे गले मिलकर अवनि अँबर के साथ गाड़ी में बैठ गई और करीब एक घंटे बाद गाड़ी जाकर अँबर के घर के बाहर खड़ी हो गई।

अँबर की मम्मी ने बहुरानी की आरती उतारी। चावल से भरे कलश को दाँयें पैर से आगे लुढ़का कर घर की लक्ष्मी अवनि का गृह प्रवेश हो गया।
शादी के अवसर पर घर आये हुए रिश्तेदारों की गहमागहमी में दस पन्द्रह दिन कैसे बीत गए अवनि को पता ही नहीं चला।
इन दिनों किसी खास रिश्तेदार परिचित के घर से खाने का बुलावा आया रहता जहाँ ये दोनों खुशियाँ बिखेरते हुए जाते और खा पीकर हँसी खुशी वापस आते थे।
लेकिन इन पन्द्रह दिनों में अवनि ने महसूस किया कि हँसता मुस्कुराता अँबर उसके साथ मजाक मस्ती करने के मूड में रहता था।
किन्तु जैसे ही अवनि अधिक करीब आने की कोशिश करती वो चिहुँक कर पीछे हट जाता । घबराहट और पसीने से लथपथ बिना कुछ कहे मुँह फेरकर सो जाता।
अवनि का सारा मूड़ खराब हो जाता।
शुरू में अवनि ने सोचा था कि शायद विवाह के समय में अधिक काम काज का जोर पड़ने से अँबर उसकी परवाह नहीं कर पाते हैं। उन्हें थकावट के कारण जल्दी नींद आ जाती है।
लेकिन अब तो दो महीने बीत गए थे और इन पति-पत्नी के बीच में आपसी दूरियाँ जस की तस बनी हुई थी।
खिले हुए गुलाब के फूल सी अवनि का चेहरा अब धीरे धीरे मुरझाने लगा। अँबर का मूड़ अधिकतर उखड़ा हुआ रहता। ऐसे हालात में हँसती मुस्कुराती अवनि का सौन्दर्य रस मुरझाने लगा ।

कुछ समय पश्चात अँबर की दीदी जब कुछ दिन के लिए घर पर रहने आई तो अवनि और उसकी दीदी में खुलकर सारी बातें खुलकर हुई।
दोनों के बीच में परस्पर सहज सम्बन्ध स्थापित करने के लिए अवनि की ननद ने एक आइडिया प्लान किया । और उन दोनों को पाँच दिन के टूर पर बाहर घूमने भेज दिया। ना ना नुकुर,नुकुर करते हुए बहन की जिद और अवनि की खुशी के लिए अँबर को घूमने आना पड़ा।

यहाँ इन दोनों को अब पूरे दिन साथ रहना था।अब दोनों के बीच कामकाज का भी कोई बहाना नहीं था। आखिर अँबर भी कब तक सच्चाई से आँखें चुरा सकता था।
एक दिन संध्या समय होटल के हाल में दोनों डायनिंग हाल में बैठे थे। मद्धम नीली पीली लाल रोशनी के बीच होटल के मंच पर स्थानीय मशहूर सिंगर अपना जादूभरा गीत संगीत का कार्यक्रम पेश कर रहे थे।

"जब कोई बात बिगड़ जाए,
जब कोई मुश्किल पड़ जाये,
तुम देना साथ मेरा हमनवां।"

ये दोनों एक दूसरे की आंखों में आंखें डालकर लाइट वाली रेड वाइन सिप कर रहे थे। आज दोनों ने पहली बार मदिरा का स्वाद चखा था।
हल्का हल्का सुरूर छाने पर वे दोनों अपने रूम में लौट आए।
आज अवनि अँबर के मन की उलझी डोर को सुलझाने की कोशिश कर रही थी। इसलिए अँबर को बातों में उलझाकर कालिज समय की बातें कहने सुनने लगी। किसी प्रकार से अँबर के मन के भीतर छिपा दर्द, अनजान भय बाहर निकल आए। यही सोचकर, खान-पान, नयी मूवी,नये पुराने हिंदी फिल्मी गानें,पहनावे की पसंद नापसंद, से लेकर वे दोनों अपने कालिज समय की बातें शेयर करने लगे। अचानक लड़खड़ाती आवाज में अँबर के मुँह से निकला कि--

" अ..व...नि...तुम जानती हो ना कि मैं... नपुंसक... हूँ...।"
"ऐसा मुझे मेरे साथ पढ़ने वाली लड़की नीरा ने कहा था।"
"वो मुझसे प्यार करने का दम भरती थी । मैं भी उसपर खुलकर पैसे खर्च करता था। एक दिन मैंने उसे अपने सबसे अच्छे मित्र से मिलवाया तो उसने नीरा को धोखेबाज कहकर मुझे उससे सावधान रहने के लिए कहा था।"
उस दिन उस दोस्त की कही गई बात मुझे बहुत बुरी लगी थी। किंतु अपने दोस्त की बात का झूठ सच जानने के लिए एक दिन मैं नीरा को होटल ताज में लेकर गया। तब सच में नीरा ने लाज शर्म की सारी दीवारें तोड़कर खुद को मेरे सामने पेश कर दिया।"
"उसी दिन से प्यार को खेल समझने वाली नीरा का घिनौना सच देखकर मुझे प्यार के नाम से नफरत सी हो गई।
तब वहाँ होटल के कमरे में मौका मिलने पर भी मैंने नीरा को छुआ तक नहीं।"
" सामने व्यंजन भरी थाली सजी रखी हो, और भूखा इंसान खाने से इंकार कर दें तो इसमें बनाने वाले व्यक्ति को अपना बहुत अपमान लगता है।
नीरा को भी बहुत बुरा लगा था। इसी बात को मुद्दा बनाकर उसने अपनी इस बेइज्जती का बदला मुझे खूब खरी खोटी सुनाकर निकाला।
घर परिवार से दूर, होस्टल में रहने वाली आजाद ख्याल नीरा ने उस समय मुझे बहुत कुछ उल्टा सीधा बोला। रोज कपड़ों की तरह अपने बाय फ्रेंड बदलने वाली नीरा के व्यंग बाण, कटु आक्षेप से मेरा कलेजा बुरी तरह से छलनी हो गया।"

इसलिए मैंने कालिज में अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी। और पिताजी के पास वापस अपने घर आकर मैंने पिताजी के व्यवसाय को सँभाल लिया।
मम्मी की जिद के कारण यहाँ आने के कुछ दिन बाद ही मेरा तुमसे विवाह हो गया।
अपनी बात कहते-कहते अँबर नशे की झोंक में अवनि के काँधें पर झूल गया।
अब समझदार पढ़ी लिखी अवनि, अँबर के अपने से दूरी बना कर रहने और बेरूख़ी भरे व्यवहार का कारण समझ चुकी थी।
सारी बातें सुनकर बहुत प्यार से अँबर के बालों को सहलाते हुए अवनि बोली कि--

"अँबर आप सोचो,यदि एक लड़की धोखेबाज थी, तो उसके जैसे ही संसार की सारी लड़कियाँ तो धोखेबाज नहीं हो जाती?"
"और ना ही उसके ताना मारने से आप नपुंसक साबित हो जाते हैं।"
"बल्कि यह बात तो आपके हृदय की संवेदनशील मनोवृत्ति को प्रकट करती है कि मौका मिलने पर भी आपने किसी लड़की के रूप सौन्दर्य जाल का गलत फायदा नहीं उठाया।"
"वरन आपने रिश्तों की पावन मर्यादा का पालन किया। वो लड़की नीरा दोस्ती और प्यार के रिश्तों में सूक्ष्म लक्ष्मण रेखा की वर्जना समझने के काबिल ही नहीं थी।"
इन सब बातों के लिए स्वयं को दोषी ठहराना बंद करो। और बेकार की बातों का बोझ दिमाग से उतार कर फेंक दो। और अब आराम से सोने की कोशिश करो।
धीरे-धीरे अँबर का माथा सहलाते हुए प्यार मनुहार भरे अंदाज में कहकर अवनि ने कमरे की बत्ती बुझा दी ।
सारी बातों के सुलझे सिरे जोड़ कर अवनि एक निर्णय पर पहुँच गयी ।
और उसने शहर लौटकर सबसे पहले मनोवैज्ञानिक काउंसलर की मदद से अँबर के मन का वहम दूर करने का मन बना लिया।

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