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लक्ष्य

नेतराम भारती


अगर-मगर की तोड़ दिवारें,
चल उठ जो भी ठाना है।
स्वेद-लहू की बूँद-बूँद का,
फल तुझको मिल जाना है।
व्योम-शिखर तक होड़ लगाते,
पंछी उड़ते जाते हैं,
सीखो लक्ष्य अचल-सा इनसे,
लक्ष्य-भेद फिर आना है।
सफ़ल वही इस जीवन में है,
जिसने समझा जीवन को,
जीवन क्या है एक तमाशा,
सुख-दुख हँसना गाना है।
पथ कंटक का, या फूलों का,
धूप मिले या छाँव खिले,
नेह-मोह में पथ के प्यारे,
मंज़िल नहीं भुलाना है।
छल-बल-कल का या चोरी का,
प्रेम-स्नेह या सेवा का,
याद रखो है सत्य जगत का,
जो बोया वह पाना है।
कड़वे-मीठे, झूठे-सच्चे,
सब हैं तेरी वाणी में,
सोच-समझकर बोल शब्द को,
व्यर्थ नहीं बरसाना है।
एक जनम भी थोड़ा है यदि,
पाना प्रेम-अमर को है,
दूर क्षितिज गंतव्य भले हो,
पर पग सतत बढ़ाना है।

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